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विश्वभारती के लिए गुरुदेव का विजन आत्मनिर्भर भारत का सार : मोदी

गुजरात प्रवास पर रवींद्र नाथ टैगोर ने ने रची कई कालजयी कृति/प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से शांति निकेतन विवि के शताब्दी समारोह को किया संबोधित

नई दिल्ली/कोलकाता। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के शांतिनिकेतन में स्थित विश्वभारती विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह को संबोधित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग से कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि सबके साथ जीना सिखाने वाली शिक्षा का गुरुदेव ने मंत्र दिया था। टैगोर का गुजरात से बहुत ही खास संबंध रहा है। वह हमेशा गुजरात की यात्रा पर जाते थे। गुजरात प्रवास के दौरान गुरुदेव ने कालजई रचना की। कोरोना महामारी ने मानव मूल्य समझाए हैं। देश के लोगों के परिश्रम से नया भारत बनेगा। विश्व भारती की आगे की यात्रा देश के लिए मील का पत्थर बनेगा।

पीएम ने कहा कि गुरुदेव कहते थे कि हम एक ऐसी व्यवस्था खड़ी करें जहां हमारे मन में कोई डर न हो, हमारा सर ऊंचा हो और हमारा ज्ञान बंधनों से मुक्त हो। आज देश राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से इस उद्देश्य को पूरा करने का प्रयास कर रहा है। पौष मेले के साथ वोकल फॉर लोकल का मंत्र हमेशा से जुड़ा रहा है। जब हम आत्मसम्मान, आत्मनिर्भरता की बात कर रहे हैं तो विश्वभारती की छात्र-छात्राएं पौष मेले में आने वाले कलाकारों की कलाकृतियां ऑनलाइन बेचने की व्यवस्था करें। विश्व भारती के लिए गुरुदेव का विजन आत्मनिर्भर भारत का भी सार है। आत्मनिर्भर भारत अभियान भी विश्व कल्याण के लिए भारत के कल्याण का मार्ग है। ये अभियान भारत को सशक्त बनाने का अभियान है, भारत की समृद्धि से विश्व में समृद्धि लाने का अभियान है।

श्री मोदी ने कहा कि गुरुदेव ने हमें स्वदेशी समाज का संकल्प दिया था। वो हमारे गांवों, कृषि को आत्मनिर्भर देखना चाहते थे। वो वाणिज्य, व्यापार, कला, साहित्य को आत्मनिर्भर देखना चाहते थे। भारत की आत्मा, भारत की आत्मनिर्भरता और भारत का आत्मसम्मान एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। भारत के आत्मसम्मान की रक्षा के लिए तो बंगाल की पीढ़ियों ने खुद को खपा दिया था। वेद से विवेकानंद तक भारत के चिंतन की धारा गुरुदेव के राष्ट्रवाद के चिंतन में भी मुखर थी। और ये धारा अंतर्मुखी नहीं थी। वो भारत को विश्व के अन्य देशों से अलग रखने वाली नहीं थी। उनका विजन था कि जो भारत में सर्वश्रेष्ठ है, उससे विश्व को लाभ हो और जो दुनिया में अच्छा है, भारत उससे भी सीखे। आपके विश्वविद्यालय का नाम ही देखिए ‘विश्व-भारती’। मतलब है – ‘मां भारती और विश्व के साथ समन्वय।’

पीएम ने कहा कि जब भक्ति और कर्म की धाराएं पुरबहार थी तो उसके साथ-साथ ज्ञान की सरिता का ये नूतन त्रिवेणी संगम, आजादी के आंदोलन की चेतना बन गया था। आजादी की ललक में भाव भक्ति की प्रेरणा भरपूर थी। समय की मांग थी कि ज्ञान के अधिष्ठान पर आजादी की जंग जीतने के लिए वैचारिक आंदोलन भी खड़ा किया जाए और साथ ही उज्ज्वल भावी भारत के निर्माण के लिए नई पीढ़ी को तैयार भी किया जाए। और इसमें बहुत बड़ी भूमिका निभाई, कई प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों ने, विश्वविद्यालयों ने। सैकड़ों वर्षों के कालखंड में चले ये आंदोलन त्याग, तपस्या और तर्पण की अनूठी मिसाल बन गए थे। इन आंदोलनों से प्रभावित होकर हज़ारों लोग आजादी की लड़ाई में बलिदान देने के लिए आगे आए। इन शिक्षण संस्थाओं ने भारत की आज़ादी के लिए चल रहे वैचारिक आंदोलन को नई ऊर्जा दी, नई दिशा दी, नई ऊंचाई दी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भक्ति आंदोलन से हम एकजुट हुए, ज्ञान आंदोलन ने बौद्धिक मज़बूती दी और कर्म आंदोलन ने हमें अपने हक के लिए लड़ाई का हौसला और साहस दिया। भक्ति आंदोलन वो डोर थी जिसने सदियों से संघर्षरत भारत को सामूहिक चेतना और आत्मविश्वास से भर दिया। भक्ति का ये विषय तब तक आगे नहीं बढ़ सकता जब तक महान काली भक्त श्रीरामकृष्ण परमहंस की चर्चा ना हो। वो महान संत, जिनके कारण भारत को स्वामी विवेकानंद मिले। स्वामी विवेकानंद भक्ति, ज्ञान और कर्म, तीनों को अपने में समाए हुए थे। उन्होंने भक्ति का दायरा बढ़ाते हुए हर व्यक्ति में दिव्यता को देखना शुरु किया। उन्होंने व्यक्ति और संस्थान के निर्माण पर बल देते हुए कर्म को भी अभिव्यक्ति दी, प्रेरणा दी। भक्ति आंदोलन के सैकड़ों वर्षों के कालखंड के साथ-साथ देश में कर्म आंदोलन भी चला। भारत के लोग गुलामी और साम्राज्यवाद से लड़ रहे थे। चाहे वो छत्रपति शिवाजी हों, महाराणा प्रताप हों, रानी लक्ष्मीबाई हों, कित्तूर की रानी चेनम्मा हों, भगवान बिरसा मुंडा का सशस्त्र संग्राम हो।

उन्होंने कहा कि अन्याय और शोषण के विरुद्ध सामान्य नागरिकों के तप-त्याग और तर्पण की कर्म-कठोर साधना अपने चरम पर थी। ये भविष्य में हमारे स्वतंत्रता संग्राम की बहुत बड़ी प्रेरणा बनी। भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक एकता को भक्ति आंदोलन ने मजबूत किया था। भक्ति युग में, हिंदुस्तान के हर क्षेत्र, हर इलाके, पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण, हर दिशा में हमारे संतों ने, महंतों ने, आचार्यों ने देश की चेतना को जागृत रखने का प्रयास किया। जब हम स्वतंत्रता संग्राम की बात करते हैं तो हमारे मन में सीधे 19-20वीं सदी का विचार आता है। लेकिन ये भी एक तथ्य है कि इन आंदोलनों की नींव बहुत पहले रखी गई थी। भारत की आजादी के आंदोलन को सदियों पहले से चले आ रहे अनेक आंदोलनों से ऊर्जा मिली थी।

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