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मधुबन के डाॅली मजदूरों की राजनीति करने वालों ने मुसीबत में छोड़ा साथ

  • कोरोना काल में पहले से परेशानी झेल रहे हैं डोली मजदूर
  • एहतियात के साथ खोले गए जैन तीर्थस्थल के मंदिरों में वंदना के लिए नहीं पहुंच रहे दूसरे राज्यों के श्रद्धालु

मनोज कुमार पिंटू
गिरिडीह।
कोरोना महामारी के बीच तमाम एहतियात के साथ धार्मिक स्थलों को पांबदियों के साथ दोबारा खोला गया। वहीं विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थल सम्मेद जी शिखर मधुबन वीरान पड़ा है। ना तो तीर्थयात्री ही नजर आ रहे है और ना मधुबन में दूसरे राज्यों की भाषा ही सुनने को मिल रही है। पांबदियां इतनी है कि तीर्थयात्री पहुंचने से भी परहेज कर रहे हैं। लिहाजा, इसका सीधा असर आठ हजार डाॅली मजदूरों पर पड़ा है। हैरानी की बात ये है कि जिन डाॅली मजदूर की राजनीति सत्तारुढ़ दल झामुमो और वामपंथी संगठनों ने हमेशा मुखर हो कर किया, वैसे दल भी इन डाॅली मजदूरों को मदद पहुंचाने से पीछे हट गये हैं। जबकि साल 2017 में पुलिस मुठभेड़ में मारे गए डाॅली मजदूर मोती लाल बाॅस्के की मौत पर इसी झामुमो ने खूब राजनीति तो की, लेकिन अब जब लाॅकडाउन के कारण इन मजदूरों की आर्थिक हालात बिगड़ने लगी तो इसी सत्तारुढ़ दल झामुमो के अलावा वामपंथी दल डाॅली मजदूरों की परेशानी से खुद को दूर रखे हुए हैं। जबकि अनलाॅक की प्रकिया शुरु होने के बाद भी मधुबन के इन आठ हजार डाॅली मजदूरों की परेशानी कम नहीं हुई है। ऐसा कोई दिन नहीं, जब एक भी डाॅली मजदूर मधुबन के तीर्थयात्री भवनों की और यात्रियों की प्रतीक्षा में टकटकी लगाएं नहीं बैठे रहते।


बहरहाल, हर साल अक्टूबर के महीनें से जैन तीर्थ यात्रियों का आवागमन शुरु हो जाता है। यात्रियों का आना-जाना तीन महीने तक लगातार रहता है। लेकिन कोरोना काल में इस साल का नवंबर माह शुरु हो चुका है। लेकिन दूसरे राज्यों से तो दूर झारखंड के भी तीर्थ यात्री मधुबन में नजर नहीं आ रहे हैं। जबकि झारखंड समेत बिहार, यूपी, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान के हर साल 25 से 30 हजार की संख्या में जैन तीर्थ यात्री भगवान महावीर समेत जैन समाज के 24 तीर्थंकरों की वंदना करने पहुंचते हैं और इन तीर्थयात्रियों को ही डाॅली मजदूर डाॅलीनुमा पालकी पर बिठाकर उंचे पारसनाथ पहाड़ का दर्शन कराते हैं। तीर्थयात्रियों को डाॅली पर बिठाकर लाने और पहुंचाने के एवज में मजदूरों को एक यात्री से 500 सौ से सात सौ की कमाई मिल जाती है।

इधर हालात का जायजा लेने पर मधुबन के उत्तर प्रदेश प्रकाश भवन के प्रबंधक आईडी शर्मा का भी मानना है कि अनलाॅक की प्रकिया तो शुरु हुई लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। क्योंकि हर रोज डाॅली मजदूर आते हैं और यात्रियों के नहीं दिखने पर वापस लौट जाते हैं। प्रबंधक ने यह भी बताया कि कोरोना को देखते हुए झारखंड सरकार ने हवाई जहाज और बसों से आने वाले यात्रियों को लेकर जिस प्रकार अलग-अलग गाईडलाईन जारी किया है, उससे यात्रियों का आना संभव नहीं है। प्लेन से आने वाले यात्रियों को सिर्फ तीन दिनों तक रहने की अनुमति है। ऐसे में कोई यात्री नहीं आना चाहेगा। प्रबंधक ने यह भी कहा कि यही गाईड लाईन रही तो मधुबन के आर्थिक हालात और खराब होंगे। प्रबंधक ने यह भी कहा कि दूसरे राज्य के तीर्थयात्री हर दो-चार दिन में मधुबन का फीडबैक लेते हैं।


इस दौरान जब मधुबन के चैनपुर, डुमरी, खुखरा समेत अन्य इलाकों के डाॅली मजदूर और उनकी महिलाओं से हालात जानने का प्रयास किया गया तो डाॅली मजदूर शंकर तूरी, रीतन तूरी, श्याम लाल तूरी के अलावा इनके घर की महिलाओं में आरती देवी, बूंदिया देवी ने बताया कि लाॅकडाउन के कारण उनका जीवन काफी प्रभावित हुआ है। पिछले आठ महीने से राशन और दवाई कर्ज लेकर मंगाया जा रहा है। इन दुकानदारों को पैसा नहीं मिलने के कारण ही अब दुकानदारों ने भी उधार देने से इंकार कर दिया है।

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