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नेहरू सरकार को परेशानियों में डालते रहे फिरोज गांधी

नेहरू सरकार की साफ-सुधरी छवि पर दामाद फिरोज करते थे बड़ी चोट

पुण्यतिथि पर विशेष

नेहरू-गांधी परिवार के दामाद फिरोज गांधी को लेकर अंदर और बाहर दोनों ही जगह समान रूप से चर्चा रही है। नेहरू सरकार को परेशानियों में डालने का क्रेडिट भी फिरोज गांधी को जाता है। वर्ष 1958 में लोकसभा सत्र के दौरान ट्रेजरी बेंच पर बैठे तत्कालीन सांसद फिरोज गांधी ने जो कहा उससे नैतिकता के ऊंचे आदर्शों का दावा करने वाली जवाहर लाल नेहरू की सरकार हिलने लगी थी।

फिरोजद गांधी ने आरोप लगाया था कि भारतीय जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी ने कुछ ऐसी कंपनियों के बाजार से कहीं अधिक कीमत पर करीब सवा करोड़ रुपये के शेयर खरीदे हैं, जिनकी हालत पतली है। यह कंपनियां कलकत्ता के कारोबारी हरिदास मूंदड़ा की थीं। सत्ताधारी पार्टी के ही सांसद होते हुए भी सरकार पर जो हमले फिरोज गांधी ने किये उससे विपक्ष को एक बेहतर मौका मिल गया था। फिरोज के सवाल से सकते में आए तत्कालीन वित्तमंत्री टीटी कृष्णमचारी ने पहले तो इससे सीधे इनकार किया, लेकिन सांसद फिरोज गांधी अपनी बात पर अड़े थे।

आखिरकार हाईकोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अगुआई में एक जांच आयोग बना। जांच में आरोप सच साबित हुए तो कृष्णमचारी को इस्तीफा देना पड़ा। यह नेहरू सरकार की साफ-सुधरी छवि पर एक बड़ी चोट थी। जवाहर लाल नेहरू के दामाद होने के बाद भी वे नेहरू जी को परेशानियों में डालने का मौका नहीं चुकते थे। देश के सबसे ताकतवर परिवार के इस दामाद को नेहरू जी की नीतियों के प्रति अपने विरोध के लिए ही जाना जाता था।

बहरहाल, वर्ष 1930 में इलाहाबाद में कांग्रेस का एक धरना था। कमला नेहरू, इंदिरा गांधी सहित कांग्रेस की कई महिला कार्यकर्ता इसमें भाग ले रही थीं। संयोग से यह उसी कॉलेज के बाहर हो रहा था जहां से फिरोज ग्रेजुएशन कर रहे थे। तेज धूप में कमला नेहरू बेहोश हो गईं और इस दौरान फिरोज ने उनकी मदद की। आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों का जज्बा देखकर अगले ही दिन उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए। उसी साल फीरोज गांधी को जेल की सजा हुई और उन्होंने फैजाबाद जेल में 19 महीने गुजारे। फिरोज गांधी ने 1933 में पहली बार इंदिरा के सामने शादी करने का प्रस्ताव रखा था। लेकिन इंदिरा और उनकी मां कमला नेहरू ने इससे इनकार कर दिया। बावजूद इसके फिरोज की नेहरू परिवार से करीबी बढ़ती गई। 28 फरवरी 1936 को जब कमला नेहरू ने दम तोड़ा तो फिरोज उनके सिरहाने ही बैठे थे।

बाद के दिनों में फिरोज और इंदिरा की घनिष्ठता बढ़ती गई। मार्च 1942 में दोनों ने शादी कर ली। नेहरू जी इस शादी के खिलाफ थे और उन्होंने महात्मा गांधी से कहा था कि वे इंदिरा को समझाएं। अगस्त 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस दंपत्ति को जेल में भेज दिया गया। वर्ष 1952 में जब भारत में पहली बार आम चुनाव हुए तो फिरोज गांधी उत्तर प्रदेश के रायबरेली से सांसद चुने गए। तब तक इंदिरा दिल्ली आ गई थीं और इस दंपत्ति के बीच मनमुटाव की चर्चाएं भी होने लगी थीं। हालांकि इंदिरा ने रायबरेली आकर पति के चुनाव प्रचार की कमान संभाली थी। जल्द ही फीरोज अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाली एक असरदार शख्सियत बन गए।

वर्ष 1955 में उनके चलते ही उद्योगपति राम किशन डालमिया के भ्रष्टाचार का खुलासा हो पाया था। यह भ्रष्टाचार एक जीवन बीमा कंपनी के जरिये किया था। इसके चलते डालमिया को कई महीने जेल में रहना पड़ा था। नतीजतन अगले ही साल 245 जीवन बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करके एक नई कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम बना दी गयी। फिरोज ने टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव (टेल्को) के राष्ट्रीयकरण की भी मांग की थी। उनका तर्क था कि यह कंपनी सरकार को जापानियों से दोगुनी कीमत पर माल दे रही है। 1957 में भी फीरोज गांधी रायबरेली से दोबारा चुने गये। हालांकि फिरोज गांधी अपने आखिरी दिनों में अकेले पड़ गए थे। 1960 में उनका निधन हो गया था।

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