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हाथरस दुष्कर्म पीड़िता के ’मवाद‘ से होली खेल रही सियासत

हाथरस दुष्कर्म कांड के बाद देश की आंखों में खून उतर आया है। आखिर सियासत कहां जा रही है? सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक रेप कांड की पीड़िता के दुख-पीड़ा और संताप से रिसते ‘मवाद’ से होली खेल रहा है। पहले ‘धन बल’ और ‘छल बल’ सत्ता या कुर्सी हासिल करने का जरिया हुआ करता था। अब, कुर्सी छिनने और बचाने की तरकीब के तौर पर घृणित जोर आजमाइश को साधने की कलाकारी में राजनीति माहिर होती जा रही है।

घर-घर में महिलाएं हिंसा की शिकार हैं। घरेलू हिंसा। दरअसल, घरों में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा का सामाजिक रूपांतरण यानी सोशल ट्रांसलेट ही तो कोई भी दुष्कर्म कांड होता है। इसे कौन समझेगा? महिला हिंसा के समूल नाश के लिए राजनीतिक मंचों पर कहीं बेचैनी नहीं दिख रही है। सियासत में अब कहीं ‘योनि बल’ को साधने का खेल न चल निकले, इसका भी खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में सीधे तौर पर राजनीति पर बलात्कारी होने का आरोप लगे तो गलत क्या है?

किसी यू-ट्यूब चैनल पर एक डिबेट देखा। इसमें भाजपा के एक नेता नेशनल क्राइम रिकाॅर्ड ब्यूरो के हवाले से बता रहे थे कि राजस्थान में वर्ष 2018 तक रेप केस के 4335 मामले रहे, जबकि इस दौर में उत्तर प्रदेश में 3946 केस ही रहे। छोटे राज्य केरल में यह नंबर 1945 तो झारखंड में 1090 है। उनका कहना था कि आबादी की लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में केसों की संख्या सबसे अधिक हो सकती थी। देश का क्या हो, जब सत्ताधारी दल का एक नेता दुष्कर्म सरीखे घिनौने मामले में तुलना करने बैठ जायें। फिलहाल, देश नकारात्मक राजनीति का शिकार है। ब्लेम क्लचर हावी है। ‘तुम्हारा कुर्ता मेरे कुर्ते से अधिक मैला’, जैसी बात हो रही है।

रेप कांड की पीड़ा झेल रहे हाथरस के अभागे परिवार पर क्या गुजर रहा है? किसे फिक्र है? दलितों की बात करने वाले और कुछ महीने पहले जेल से निकले चंद्रशेखर रावण प्रदर्शनों में हाथ की लिखी तख्तियों के साथ पीड़िता की तसवीर उछाल रहे हैं। दूसरी ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को मामले में चुप्पी तोड़ी। अधिकारियों पर कार्रवाई की। लेकिन, मामला आज का नहीं है। 14 सितंबर को चार लोगों ने इस 19 वर्षीय लड़की का कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया था। उसका इलाज चला और 29 सितंबर की सुबह दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया। घटना से लेकर पीड़िता की मौत तक यानी 15 दिनों के अंतराल में न तो विपक्ष को पड़ी थी और न सीएम योगी जी ने कोई सख्त कार्रवाई की।

सोशल मीडिया में तो अलग ही खेल है। पीड़िता को इंसाफ दिलाने के लिए सोशल मीडिया पर कई हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। कई लोग गन्ने के खेत में खड़ी मुस्कुराती हुई एक लड़की की फोटो पीड़िता बताकर शेयर कर रहे हैं। जबकि सोशल मीडिया पर गन्ने के खेत में खड़ी जिस लड़की की फोटो हाथरस गैंगरेप पीड़िता के नाम से शेयर की जा रही है, वह कोई और लड़की है। मोटिवेशनल स्पीकर और यूट्यूबर गीत ने भी इस तस्वीर को हाथरस की गैंगरेप पीड़िता के नाम वाले हैशटैग के साथ शेयर किया।

गन्ने के खेत वाली लड़की दरअसल मनीषा यादव है। जिसकी मौत चंडीगढ़ के एक अस्पताल में 22 जुलाई 2018 को इलाज के दौरान हो गई थी। मनीषा उत्तर प्रदेश के अयोध्या की रहने वाली थी और उसके भाई अजय यादव के मुताबिक यह फोटो भी उसके गांव की ही है। अब बताईये, कुछ यूट्यूबरों और कुछ बेहूदे पोर्टल वालों को अपनी कमायी की ही पड़ी है, मगर उनकी आपराधिक लापरवाही से मनीषा यादव के घरवालों पर क्या गुजरी होगी? खैर गन्ने के खेत वाली सभी पोस्ट को अबतक दसियों हजार से अधिक लोग शेयर कर चुके हैं। ‘जनभारत टाइम्स’, ‘तेलुगु सर्कल्स’, ‘भारतहेडलाइंस’ और ‘पब्लिसिस्ट रिकॉर्डर’ जैसी कई वेबसाइट्स ने भी अपनी खबरों में वायरल तस्वीर को ही हाथरस गैंगरेप पीड़िता की तस्वीर के तौर पर इस्तेमाल किया है।

बहरहाल, पूरे मामले में रजनीति का घृणित चेहरा सामने आया है। क्या सत्ता पक्ष और क्या विपक्ष। विपक्ष ने हाथरस रेप केस को उछाला है। लेकिन, हरेक रेप केस पर ऐसी ही बेचैनी दिखनी चाहिए। मगर, विरोधी दलों को दूसरे राज्यों के किसी रेप केस से इतना ही दर्द हुआ होता तो जरूर देश के सभी राज्यों के सभी जिलों का सिस्टम रेप केस के मामलों में संवेदनशील होता। विरोधी दलों का हाथरस रेप केस के कुछ ही दिन बाद उत्तर प्रदेश के ही बलरामपुर और आजमगढ़ दुष्कर्म कांड से द्रवित नहीं होना भी इन दलों को बलात्कारी ही बनाता है।

दूसरी ओर हाथरस स्थित घटनास्थल या पीड़िता के घर जाने से मीडिया वालों या विरोधी दलों के नेताओं को रोकना भी उत्तर प्रदेश शासन पर सवाल उठाता है। आखिर शासन को किस बात का डर है। 14 सितंबर को हाथरस रेप के फौरन बाद विपक्ष ने कोई मुद्दा नहीं उछाला ये तो एक मसला है, मगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी फौरन हरकत में क्यों नहीं आये। जबकि इस साल जनवरी में जौनपुर और आजमगढ़ में कुछ दबंग मुस्लिमों ने दलितों के घर जलाये और दलित बेटियों से अभद्रता की तो योगी जी की सरकार ने बिजली की गति से कार्रवाई की। हां, तब दलित वोटों के ठीकेदार मायावती और चंद्रशेखर रावण ने मामले मेें चुप्पी साधे रखी। क्योंकि दलित वोटों को अपनी जागिर समझने वाली मायावती या उनके प्रतिद्वंद्वि चंद्रशेखर रावण मुस्लिम वोटों को खराब नहीं करना चाहते थे।

तब दलितों पर अत्याचार की खबरों से चंद्रशेखर रावण और मायावती की जुबान पर लगा मजबूरी का ताला लगा रहा। हां, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना का पता चलते ही आनन-फानन में उक्त घटना को अंजाम देने वालों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) और गैंगेस्टर एक्ट लगाने में देरी नहीं की। इस बीच इतना जरूर हुआ की जब माया को लगा की कहीं योगी दलित सियासत में बाजी मार नहीं ले जाएं तो उन्होंने सोशल मीडिया पर एक बयान जरूर जारी कर दिया कि उक्त घटना में लिप्त लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। आज हाथरस में दलित की बेटी को न्याय का नारा देने वाले जातीय कार्ड भी खेल रहे हैं। अंबेदकर ने कहा था कि दुनिया की सबसे दुखियारी औरतें ब्राहम्ण विधवा महिलाएं होती हैं। लेकिन, अंबेदकर के अनुयायी होने का दिखावा करने वाले ये मायावती या रावण कभी ब्राह्मण औरतों की पीड़ा से दुखी होते नहीं दिखे। जो हो, किसी भी रेप केस पर मुद्दे जरूर उठ रहे हैं, मगर लड़ाई को तार्किक परिणति पर पहुंचाने की बजाये कुर्सी ही मुख्य लक्ष्य रह गया है।

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