मनरेगा एक्ट बना गावां प्रखंड में कमाई का जरिया
- ठेकेदार से लेकर उच्च अधिकारियों की हो रही है चांदी
निशांत बरनवाल
गिरिडीह। गावां प्रखंड में इन दिनों मनरेगा योजना में खुली लूट मची हुई है, जिसका फायदा उठा कर मनरेगा ठेकेदारों से लेकर उच्च अधिकारियों तक की चांदी हो रही है। जानकारी के अनुसार मनरेगा योजना के तहत करोड़ो रुपयों की योजना पूरे प्रखंड में स्वीकृत की जाती है। मगर जमीनी हकीकत यह है कि इनमे से अधिकांश योजना धरातल पर मौजूद नहीं मिलती है। इसके अलावा इन योजनाओं को स्वीकृत देने व जांच के नाम पर मनरेगा ठेकेदारों से कर्मचारियों व अधिकारियों द्वारा मोटी रकम उगाही की जाती है।
गावां प्रखंड के इन पंचायतों में मनरेगा योजना में हो रही है गड़बड़ी
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार गावां प्रखंड के गावां, माल्डा, आमतरो, सेरूआ, बादीडीह, गदर, पीहरा, सांख, जमदार एवं पासनौर में मनरेगा योजना में सबसे ज्यादा गड़बड़ी होने की शिकायत मिल रही है। इन गड़बड़ियों में मुख्य रूप से मिट्टी मोरम सड़क, डोभा निर्माण, पशु शेड, कूप निर्माण में ज्यादातर गड़बड़ी देखने को मिल रही है।
कैसे की जा रही है मनरेगा योजना में गड़बड़ी
जानकारी के अनुसार मनरेगा के तहत किए जाने वाले ज्यादातर योजनाओं में बोर्ड नही लगाया गया है। जिससे पुराने योजनाओं को एक दो साल में फिर से दुबारा रजिस्टर करवा कर पैसे की निकासी की जा रही है। वही इसके अलावा कई योजनाएं ऐसी है जिसमे रुपयों की निकासी तो हो गई है किंतु धरातल पर कोई कार्य पूरा नहीं हुआ है। और इनमें से कई योजनाएं ऐसी भी है जो सिर्फ कागजों पर मौजूद है वास्तविकता से कोई लेना देना नही है।
फर्जी जॉब कार्ड धारियों के माध्यम से हो रही है पैसों की निकासी
गावां प्रखंड में मनरेगा मजदूरों के लिए निर्गत किए गए जॉब कार्डों में भी ज्यादातर फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। लगभग 55 प्रतिशत जॉब कार्ड जिन लोगांे को निर्गत किया गया है। उनसे कोई व्यापारी है तो कोई गृहिणी। वहीं इसमें से 20 प्रतिशत ऐसे भी जॉब कार्ड भी बनाए गए है जो लोग वहां पर मौजूद भी नही है। अगर इन सभी मजदूरों के खाते की जांच की जाए तो उन सभी में एक बात सामान्य नजर आएगी कि सभी के खाते में पैसे जाने के कुछ घंटों बाद ही उसने से कमीसन को छोड़ कर बाकी पैसे की निकासी ठेकेदार द्वारा कर ली जा रही है।
कैसे होती है पैसों की बंदरबांट
भाकपा माले के विरोध के बाद व लोगों के बीच चर्चा के अनुसार ग्राम रोजगार सेवक से लेकर बीडीओ तक पैसों की बंदर बांट कीये जाने की बात सामने आई है। अगर इसका प्रतिशत दर के अनुसार देखा जाए तो 40प्रतिशत सरकारी कर्मचारियों ही मनरेगा के पैसे योजना को स्वीकृत करने से लेकर उसे बंद करने तक ले लेते है। वहीं बाकी के पैसों में 10 प्रतिशत मनरेगा मजदूरों को कमीशन दिया जाता है और बाकी बचे 50 प्रतिशत ठेकेदार को मिलता है जिससे वे मनरेगा योजना के कार्य करवाते है या फिर अधूरे छोड़ कर पैसे को चपत कर देते है।
किन कर्मचारियों व अधिकारियों को कैसे हो रही है कमाई
लोगों के बीच हो रहे चर्चे और भाकपा माले के कार्यकर्ताओं द्वारा लगाए गए आरोपों के अनुसार सर्व प्रथम मनरेगा योजना के रेकड़ बनाने के समय कर्मचारियों द्वारा 200 से 500 रुपए लिए जाते है। वहीं इसके ऑनलाइन करने के समय व भुगतान करने के समय कंप्यूटर ऑपरेटर द्वारा भी 500 से 1000 रुपए तक की कमाई की जा रही है। योजना को स्वीकृत करने के लिए पंचायत सेवक व रोजगार सेवक द्वारा 2 से 5 प्रतिशत योजना के अनुसार ठेकेदारों से लिया जाता है। वहीं योजना का एमबी करने के समय जेईई और ऐई द्वारा 5 से 10 प्रतिशत कमीशन लिया जाता है। वही मनरेगा के बीपीओ एवम प्रखंड के बीडीओ द्वारा योजनाओं की स्वीकृति के समय व मेटेरियल के भुगतान के समय 10 प्रतिशत कमीसन लिया जाता है। इसके अलावा कुछ मुखियाओं द्वारा योजना के नाम पर कमीसन लेने की बात भी चर्चे में आती है।
जांच के नाम पर होती है पैसों की उगाही
बता दें कि जब ग्रामीणों द्वारा शिकायत किया जाता है या फिर जांच के लिए अधिकारी स्थल पहुंचते है तो उन्हें योजनाओं में कई गड़बड़िया देखने को मिलती है। जिन पर कार्यवाही नही करने के लिए मनरेगा ठेकेदारों द्वारा मैनेज करने का प्रयास किया जाता है। अगर अधिकारियों को दिए जा रहे चढ़ावा पसंद आ जाता है तो कार्यवाही नही होती है वहीं अगर उन्हें पसंद नहीं आए तो उनपर कार्यवाही कर के पैसों की रिकवरी कर ली जाती है। ऐसा ही कुछ हाल सोशल ऑडिट करने वाले टीमों के साथ भी होता है। जब उनकी टीम जांच के लिए प्रखंड के पंचायत पहुंचती है तो सांठ गांठ कर बड़ी गलती करने वालों को बचा लिया जाता है वही छोटी मोटी गलतियां दिखाकर रिकवरी की जाती है।
आखिर ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सच में गावां प्रखंड में मनरेगा मजदूरों के लिए फायदेमंद है या फिर सिर्फ ठेकेदारों व अधिकारियों का यह जेब भर रहा है। ग्रामीणों की अगर मानें तो हरेक योजनाओं की जांच जन प्रतिनिधियों, ग्रामीणों और मीडिया के समक्ष होनी चाहिए जिससे मामला कभी रफा दफा न हो और दोषियों पर कार्यवाही हो।