LatestNewsकोडरमागिरिडीहझारखण्डराँची

दिल के अरमां, आंसूओ में बह गए, 49 सालों का तो हुआ गिरिडीह, लेकिन दो महान विभूतियों के इस कर्मभूमि को हासिल क्या हुआ,

गिरिडीहः
गिरिडीह अपने जन्म का आज भले ही 49 साल मना रहा हो। लेकिन इन 49 सालों में जिले को हासिल क्या हुआ। इसका जवाब भी सही से जनप्रतिनिधियों और जिम्मेवार व्यक्तियों के पास नहीं हो। जबकि गिरिडीह के क्षेत्रफल के आधार पर दो सांसद और छह विधायक हर पांच साल में इसके सिरमौर बनते है। इतना ही नही दो महान कर्मयोगियों ने इसकी पहचान अब तक इसे राष्ट्रीय फलक पर दिलाया। इनमें गिरिडीह में रहकर पौधो में जीवन की खोज करने वाले देश के महान वैज्ञानिक सर जेसी बोस और देश में सांख्यिकी के जन्मदाता प्रोफेसर पीसी महालनोबिस है। जिन्होंने गिरिडीह में देश को राष्ट्रीय स्तर पर पहला भारतीय सांख्यिकी संस्थान दिया। जो आज भी भारत सरकार के संस्थान में रुप में कार्यरत है। और इन्हीं पीसी महालनोबिस को देश में डाटा का जन्मदाता भी कहा जाता है। जिसके सहारे भारत सरकार हर पांच का ध्यान रखकर देश के विकास के लिए नीति की योजना तैयार करती है।

तो दुसरी तरफ इन्हीं पीसी महालनोबिस की पत्नी रानी महालनोबिस ने छात्राओं को उच्च शिक्षा के लिए महिला काॅलेज की स्थापना के लिए अपने घर तक दे दी। तो राज्य गठन के बाद झारखंड का पहला सीएम बाबूलाल मंराडी के रुप में इसी जिले ने दिया था। इसके बाद भी 49 सालों के सफर में जिले को कुछ हासिल नहीं हुआ। जो होना चाहिए था।
एक तरफ मेडिकल कोर्स की तैयारी के लिए छात्रों को अब भी दुसरे राज्यों में जाना पड़ता है। तो दुसरी तरफ भारत सरकार के गिरिडीह में कार्यरत भारतीय सांख्यिकी संस्थान में कृषि आधारित कई शोध सालों किए जाते है। और कृषि आधारित कई महत्पूर्ण कोर्स भी कराएं जाते है। जिसकी पढ़ाई के लिए देश के कई राज्यों के छात्र अपना एडमिशन करा रहे है। नहीं हो मेडिकल समेत कई और कोर्स के लिए छात्रों को दुसरे राज्यों में जाना अब मजबूरी हो गई है।

जबकि गंभीर बीमारी हो या, सड़क हादसे के बाद जान बचाना, वैसे हालात में भी लोगों को वक्त-बेवक्त दुसरे जिले और दुसरे राज्य में अपनी जान सुरक्षित करना भी इसी बे ऐसे में सिर्फ वही गाना गुनगुना बेहतर है कि दिल के अरमां आंसूओ में बह गए, तो यह गीत ही गिरिडीह के 49 सालों के बेदर्द सफर में फिट बैठता है। वैसे भी इसकी बानगी कोरोना काल के दौरान ही दिखा था जब संक्रमित व्यक्ति खुद के जान बचाने के लिए बंगाल जैसे राज्य पहुंच कर इलाज कराएं थे। तो कनेक्टिविटी का हाल भी कम रुलाने वाला नहीं है। 49 सालों में गिरिडीह को सिर्फ दो ट्रेन कोडरमा-गिरिडीह और गिरिडीह-मधुपूर के ट्रेन ही नसीब हो पाएं।

Please follow and like us:
Show Buttons
Hide Buttons