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मनरेगा योजना में राॅयल्टी के घोटालेबाज करते रहे राॅयल्टी की चोरी, और गिरिडीह सदर प्रखंड से होता गया हर योजना का भुगतान

योजना के भुगतान के बाद पदाधिकारी भी नहीं किए माॅनिटरिंग

गिरिडीहः
गिरिडीह में मनरेगा योजना के राॅयल्टी घोटाले को अंजाम देने वाले वैंडर आपूर्तिकर्ताओं के नाम तो समाजिक कार्यकर्ता शिवनाथ साव द्वारा मांगे गए सूचनाधिकार अधिनियम से सामने आ गए है। लेकिन इन घोटालेबाज आपूर्तिकर्ताओं को पिछले तीन सालों से पदाधिकारियों का भी संरक्षण मिल रहा था। तभी तो जिले के सिर्फ सदर प्रखंड के घोटालेबाज आपूर्तिकर्ताओं का नाम सामने आया है। जिनके खाते में आपूर्ति किए जाने वाले समानों का भुगतान तक कर दिया गया। दरअसल, साल 2017 में मनरेगा योजना से सदर प्रखंड में आंगनबाड़ी केन्द्रो का निर्माण किया गया था। फिलहाल राॅयल्टी घोटाले से जुड़े दस्तावेज यही संकेत कर रहे है। जिसमें लाभुकों ने मगहीयाटोला के आपूर्तिकर्ता सुरेश वर्मा, द्वारपहरी के जर्नादन वर्मा, जोभी के बीरबल मंडल, खावा के मोहन मंडल और अर्जुन कुशवाहा, लेखो मंडल, सुरेश कुमार सागर, इनाम आलम समेत कई वैंडर से ईट, बालू समेत अन्य लघु खनिज की खरीदारी किया।
लाभुकों ने इन वैंडरों को तो भुगतान कर दिया। लेकिन इन वैंडरों ने खनन विभाग को राॅयल्टी का भुगतान नहीं की। तो हैरान करने वाली बात यह भी है कि राॅयल्टी के इन घोटालेबाजों का निबंधन भी सेलटैक्स कार्यालय में रद्द है। समाजिक कार्यकर्ता को लिखित सूचना सेलटैक्स कार्याला की और से दिया गया। इधर जिन वैंडरो ने करोड़ो का राॅयल्टी घोटाला किया। उनके नाम भी सदर प्रखंड से पूर्व बीडिओ स्तर से मिला है। जिसमें उनके बैंक खाते तक का जिक्र है। लिहाजा, राॅयल्टी घोटाले के घोटालेबाजों को इतने साल तक बचाने वाले असल जिम्मेवार पदाधिकारी कौन थे, इनकी पहचान भी प्रशासन कई सालों तक नहीं कर पाया है। हैरानी की बात तो यह भी है कि मामला सामने आने के बाद प्रशासन और सत्तारुढ़ दल के जनप्रतिनिधी भी ऐसे खामोश है कि करोड़ो का घोटाला हुआ, तो क्या हुआ। सरकार नए फंड देकर इन घोटालों की क्षतिपूर्ति पूरा करेगी।
बहरहाल, पिछले तीन सालों में वैंडर अगर कायदे से राॅयल्टी का भुगतान करते, तो राॅयल्टी की राशि करोड़ो तक होता। लेकिन जिले के प्रखंडों में मनरेगा से जुड़े पदाधिकारियों ने बगैर जांच के लाभुकों को भुगतान कर दिया। तो योजना लेने वाले लाभुकों ने भी वैंडर को हर समानों का भुगतान करते चले गए। पदाधिकारियों ने पता लगाना जरुरी नहीं समझा कि वैंडर जिन लघु खनिज को लाभुकों को बेंच रहे है। उसका भुगतान खनन विभाग को किया भी है या नहीं। जाहिर है कि तीन सालों तक राॅयल्टी घोटाले की पदाधिकारियों, लाभुक और वैंडरों ने पटकथा भी पहले से तैयार किया जा था। तभी इसे अंजाम दिया गया।

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