अब हाइपरसोनिक तकनीक से भी लैस हो गया भारत
शत्रु देश के एयर डिफेंस सिस्टम को भनक भी नहीं लगेगी और होगा अचूक निशाना
नई दिल्ली। हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक के क्षेत्र में भारत ने बड़ी छलांग लगाई है। डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन ने ओडिशा के बालासोर में हाइपरसोनिक टेक्नॉलजी डिमॉन्स्ट्रेटर वीइकल टेस्ट को अंजाम दिया। हवा में आवाज की गति से छह गुना अधिक स्पीड से यह दूरी तय करता है। यानी दुश्मन देश के एयर डिफेंस सिस्टम को इसकी भनक तक नहीं लगेगी। अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चौथा ऐसा देश बन गया है जिसने खुद की हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी विकसित कर ली और इसका सफलतापूर्वक परीक्षण भी कर लिया है।
भारत के पास अब बिना विदेशी मदद के हाइपरसोनिक मिसाइल डेवलप करने की क्षमता हो गई है। डीआरडीओ अगले पांच साल में स्क्रैमजेट इंजन के साथ हाइपरसोनिक मिसाइल तैयार कर सकता है। इसकी रफ्तार दो किमी प्रति सेकेंड से अधिक होगी। सबसे बड़ी बात यह है कि इससे अंतरिक्ष में सैटेलाइट्स भी कम लागत पर लॉन्च किये जा सकते हैं। अब आगे भारत को अगली जेनरेशन की हाइपरसोनिक मिसाइल ब्रह्मोस-2 तैयार करने में मदद मिलेगी। डीआरडीओ और रूस की एजेंसी मिलकर डेवलप कर रहे हैं।
इस टेस्िंटग से भारत को उन चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल हो गया है, जो जो ऐसी टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन कर चुके हैं।
यह स्क्रैमजेट एयरक्राफ्ट अपने साथ लॉन्ग रेंज और हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइलें ले जा सकता है। आवाज से 6 गुना ज्यादा तेज रफ्तार का मतलब ये है कि दुनिया के किसी भी कोने में दुश्मन के ठिकाने को घंटे भर के भीतर निशाना बनाया जा सकता है। आम मिसाइलें बैलस्टिक ट्रैजेक्टरी फॉलो करती हैं। इसका मतलब है कि उनके रास्ते को आसानी से ट्रैक किया जा सकता है। इससे दुश्मन को तैयारी और काउंटर अटैक का मौका मिलता है जबकि हाइपरसोनिक वेपन सिस्टम कोई तयशुदा रास्ते पर नहीं चलता। लिहाजा, दुश्मन को कभी अंदाजा नहीं होगा कि उसका रास्ता क्या है। स्पीड भी काफी तेज है।
हाइपरसोनिक वह मिसाइल मिसाइल होती है जो आवाज की रफ्तार से 5 गुना ज्यादा तेज चलती है। ये दो प्रकार की होती है। पहली हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल और दूसरी हाइपरसोनिक ग्लाइड वीइकल। ये मिसाइलें मिनटों में दुनिया में कहीं भी मौजूद अपने टारगेट को ध्वस्त कर सकती हैं। अबतक अमेरिका, चीन और रूस के पास ही ऐसी मिसाइलें हैं। अमेरिका जहां परंपरागत पेलोड्स पर फोकस कर रहा है। वहीं, चीन और रूस परंपरागत के अलावा न्यूक्लियर डिलीवरी पर भी काम कर रहे हैं। ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे इन मिसाइल्स को इंटरसेप्ट किया जा सके।