गिरिडीह में मनरेगा योजना में होता गया भुगतान, तो सरकार को मिलने वाले करोड़ो रुपये की राॅयल्टी का तीन सालों में हो गया डकैती
मनरेगा योजना में करोड़ो का चूना लगाने वाले दोषी तीन सालों से छिपे रहे
समाजिक कार्यकर्ता के सहयोग से डीएमओ ने राॅयल्टी की इस बड़े चोरी का खुलासा
मनोज कुमार पिंटूः गिरिडीहः
मनरेगा योजना में भष्ट्राचार और गड़बड़ी के मामले गिरिडीह के लिए कोई नई बात नहीं। अधिकारियों और योजना के लाभुकों के मिलीभगत के कारण अक्सर मनरेगा की योजना सुर्खियों में रहा। फर्क सिर्फ इतना रहा कि जहां गड़बड़ी और भष्ट्राचार के मामले सामने आएं। वहां सरकार और प्रशासन के स्तर पर खानापूर्ति की कार्रवाई हुई। लेकिन किसी ने सोचा नहीं होगा कि मनरेगा योजना के माध्यम से भी राज्य सरकार को मिलने वाले करोड़ो के राॅयल्टी को भी अधिकारियों, लाभुक और समानों के आपूर्तिकर्ता के मिलीभगत से चूना लगा दिया जाएगा। एक तरह से कहा जाएं कि जिला खनन कार्यालय को मिलने वाले राॅयल्टी का भष्ट्राचारियों ने डकैती कर लिया। तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि इसमें मिलीभगत बीडिओ, मनरेगा जेई से लेकर संभवत डीडीसी कार्यालय तक के पदाधिकारियों और कर्मियों के मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता।
राॅयल्टी के हुए डकैती का खुलासा खुद जिला खनन पदाधिकारी सतीश नायक ने किया। लेकिन राॅयल्टी के इस बड़े डकैती का खुलासा करने में सदर प्रखंड के पपरवाटांड के समाजिक कार्यकर्ता शिवनाथ साव ने महत्पूर्ण भूमिका निभाया। क्योंकि तीन सालों के भीतर मनरेगा योजना के लाभुकों को भुगतान होता गया। लाभुकों ने समानों के आपूर्तिकर्ताओं को भी भुगतान कर दिया। लेकिन एक भी आपूर्तिकर्ता ने खनन कार्यालय को ईट-बालू, चिप्स समेत लघु खनिज के लिए राॅयल्टी का भुगतान नहीं किया। लिहाजा, जिला खनन कार्यालय अब यही मानकर चल रहा है कि राॅयल्टी चोरी का यह मामला करोड़ो का हो सकता है।
हालांकि राॅयल्टी चोरी का यह मामला साल 2017 से लेकर 2019 तक का बताया जा रहा है। लेकिन राॅयल्टी की डकैती मनरेगा योजना के लाभुकों समेत अधिकारियों और आपूर्तिकर्ताओं द्वारा अब भी जारी है। वैसे जिला खनन पदाधिकारी सतीश नायक को जब पूरे मामले का पता चला। तो खनन पदाधिकारी के सुझाव पर डीसी ने जिले के सभी बीडिओ को आपूर्तिकर्ताओं को पत्राचार कर राॅयल्टी जमा कराने की बात कही। बीडिओ को पत्राचार कर डीसी ने यह भी कहा कि जिन प्रखंडो में वैंडरों द्वारा नियम के अनुसार राॅयल्टी जमा नहीं कर रहे है। वैसे आपूर्तिकर्ताओं को तुंरत नोटिस करें।

दरअसल, मनरेगा के तहत ली जाने वाले योजना में इस्तेमाल होने वाले समान ईट, चिप्स, बालू समेत अन्य लघु खनिज की खरीद लाभुक आपूर्तिकर्ताओं से करते है। तो आपूर्तिकर्ता द्वारा यानि, वैंडर को भी इन समानों की राॅयल्टी जिला खनन कार्यालय में भुगतान करने का प्रावधान है। खनन विभाग जेएमएमसी एक्ट की धारा 55 के तहत आपूर्तिकर्ताओं से भुगतान लेता है। लेकिन पिछले तीन सालों से राॅयल्टी की जो चोरी हुई। वह चोरी संभवत अब भी जारी है। जबकि लाभुकों ने आपूर्तिकर्ताओं को योजना की तय में कटौती कर राॅयल्टी तक का भुगतान कर दिया। तो एक भी वैंडर द्वारा खनन कार्यालय को राॅयल्टी का भुगतान नहीं किया गया। वैसे तीन सालों के भीतर कई योजना ली गई। लेकिन भुगतान किसी का नहीं हुआ। तो दुसरी तरफ खनन कार्यालय का कहना है कि राॅयल्टी के राशि की चोरी करोड़ो तक हो सकता है।