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बिहार चुनाव: रामविलास के निधन से बढ़ सकती है नीतीश की मुश्किलें

नड्डा को लिखे पत्र में चिराग ने बताया है कि नीमीश ने कहा था कि क्यों क्यों ठाकुर और ब्राह्मण के लिए मंत्री पद मांग रहे हैं?

पटना। चुनाव से पहले रामविलास पासवान के निधन का बिहार चुनाव परिणाम पर नीतीश कुमार के लिए नकारात्मक असर डाल सकता है। फिलहाल चिराग पासवान की उस चिट्ठी से बिहार की राजनीति में खलबली मची हुई है जो उन्होंने चुनाव की घोषणा से एक दिन पहले भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखी थी। इस चिट्ठी के मजमून से कई गंभीर सवाल खड़े हो गये हैं। क्या नीतीश कुमार ने जानबूझ कर रामविलास पासवान का अपमान किया था? क्या नीतीश कुमार सवर्ण विरोधी हैं? अगर ये दोनों सवाल तथ्य की कसौटी पर सही पाये गये तो जदयू के लिए मुश्किलें खड़ी होगी।

बहरहाल, लोजपा का एनडीए से बाहर निकलना और रामविलास की मौत की टाइमिंग ऐसा इत्तेफाक है जिससे जदयू का उबरना मुश्किल लग रहा है। जिस दिन एनडीए की सीट का बंटवारा हुआ था उस दिन नीतीश कुमार ने कहा था कि क्या रामविलास पासवान बिना जदयू के समर्थन के राज्यसभा में चले गये? अब इस सवाल पर चिराग की विस्फोटक चिट्ठी से एक नयी जानकारी मिली है। चिराग ने जेपी नड्डा को लिखी चिट्ठी में लिखा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान एनडीए की सीट बंटवारे के समय यह तय हुआ था कि लोजपा को छह लोकसभा सीटों के साथ राज्यसभा की भी एक सीट दी जाएगी। उस बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मौजूद थे। लेकिन राज्यसभा चुनाव के समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने समर्थन देने से मना कर दिया था। वे रामविलास पासवान के नामांकन के समय भी नहीं पहुंचे। बाद में विधानसभा आये। यह हमारे नेता रामवविलास पासवान का अपमान था। उस समय मुख्यमंत्री के इस रवैये से पार्टी में बहुत नाराजगी थी। लेकिन लोजपा के किसी नेता ने सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहा।

ऐसे में अब सवाल ये पूछा जा रहा है कि क्या नीतीश कुमार ने राज्यसभा चुनाव के समय रामविलास पासवान की मदद नहीं की थी? तो फिर नीतीश ने क्यों कहा कि रामविलास उनके समर्थन से राज्यससभा में गये थे? चिराग के मुताबिक उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के सांसद बनने के बाद नीतीश मंत्रिमंडल में लोजपा का प्रतिनिधित्व समाप्त हो गया था। मैंने कई बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लोजपा को सरकार में शामिल करने की मांग की। मेरे बार-बार कहने पर मुख्यमंत्री ने कहा था, क्यों ठाकुर और ब्राह्मण के लिए मंत्री पद मांग रहे हैं? आपके परिवार का कोई होता तो मंत्री बना देते।

चिराग के इस खुलासे के बाद नीतीश कुमार घिरते दिख रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार सवर्ण विरोधी हैं? उनके आसपास जो सवर्ण नेता खड़े हैं क्या वे सजावटी चेहरा हैं? नीतीश कुमार समरस समाज और विकास की बात करते हैं। क्या ये दिखावा है? इन सवालों से न केवल नीतीश कुमार बल्कि भाजपा की भी चुनावी नैया बीच मझधार में फंस जाएगी? भाजपा जिस तरह से नीतीश के लिए ढाल बनी हुई है, उसका भी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। लोकसभा चुनाव में राजद ने सवर्ण विरोधी रवैये का अंजाम देख लिया है। दूसरी तरफ लोजपा ने 43 फीसदी सवर्ण उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतार कर एक बड़ा दांव खेला है।

रामविलास पासवान दलित समुदाय के बड़े नेता थे। उनके निधन का उनके समर्थकों पर भावनात्मक असर पड़ा है। विपत्ति और अपमान ऐसी पीड़ा है जो किसी समुदाय को एकजुट होने के लिए प्रेरित कर देती है, ताकि वह अपने आत्मसम्मान की रक्षा कर सके। लोकसभा चुनाव के बाद चिराग के चाचा सांसद रामचंद्र पासवान का निधन हो गया। विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग के पिता और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान गुजर गये। ऐसे में जब चिराग ने एनडीए से अलग होने का कठिन फैसला लिया तब इन दिग्गज नेताओं की गैरमौजूदगी कुछ अधिक अखरेगी। आम जनमानस वैसे भी किसी दिवंगत व्यक्ति के परिवार से सहानुभूति रखता है। चिराग ने नीतीश कुमार पर जो आरोप लगाये हैं उससे चिराग के पक्ष में सहानुभूति पैदा हो सकती है। यह जनसमर्थन लोजपा को आकस्मिक और अतिरिक्त लाभ के रूप में मिलेगा। अगर लोजपा को यह आकस्मिक लाभ मिलता है तो यह नीतीश की हार के आधार पर मिलेगा।

अगर सहानुभूति वोट से लोजपा का उम्मीदवार जीतता है तो जाहिर है नीतीश का ही उम्मीदवार हारेगा। लोजपा ने पहले चरण में जदयू के 32 उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवार उतार भी दिये हैं। जदयू की बाकी सीटों पर भी लोजपा के प्रत्याशी खड़े होंगे। एससी के लिए 38 और एसटी के लिए दो रिजर्व सीटों पर अब लोजपा का पलड़ा भारी दिख रहा है। दलित वोटरों ने अगर सहानुभूति में लोजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण कर दिया तो जदयू के मंसूबों पर पानी फिर जाएगा। नीतीश कुमार ने जिस तरह से लोजपा को एनडीए से दरकिनार करने की परिस्थितियां पैदा कीं, अब रामविलास के समर्थकों को उसकी चुभन तेज महसूस हो रही है।

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