घर और कार्यालय के लिए बांस के बने सजावट के समानों ने मधुबन को दिलाया खास पहचान
नाबार्ड और हैल्फ फांउडेशन के प्रशिक्षण में महिलाओं के हुनर और कौशल देखने पहुंचे जीएम
प्रशिक्षण में नक्सल प्रभावित इलाके की महिलाओं के हुनर ने जीएम को किया प्रभावित
गिरिडीह
अहिंसा का संदेश देने वाले भगवान पाश्र्वनाथ के तपोभूमि मधुबन की नई पहचान महिलाओं ने बांस के बने हस्तशिल्प कला उद्योग से कर दी है। हालांकि बांस के इस शिल्प उद्योग के लिए इन महिलाओं को एक माह का प्रशिक्षण भी दिया गया। लेकिन जब महिलाएं प्रशिक्षित हुई तो घर से लेकर हर कार्यालय के सजावट का समान भी तैयार करना सीख गई। हैल्फ फांउडेशन और नाबार्ड के ज्वांईट प्रशिक्षण में मधुबन के करीब आधा दर्जन गांव की महिलाएं हस्तशिलल्प उद्योग में दिलचस्पी दिखाई। वैसे एक माह तक चले इस प्रशिक्षण का समापन गुरुवार को ही किया गया। जिसमें नाबार्ड के रांची से आएं सहायक महाप्रबंधक सुभाष गर्ग के साथ नाबार्ड के गिरिडीह डीडीएम आशुतोष प्रकाश और हैल्प फांउडेशन रीतेश चन्द्रा पहुंचे थे। प्रशिक्षण के समापन के मौके पर ही जिले के नक्सल प्रभावित इलाकों की महिलाओं का हुनर और कौशल देख अधिकारी खुश दिखें। इस दौरान सहायक महाप्रबंधक ने प्रशिक्षण में शामिल हर महिलाओं को आठ सौ रुपये का पारितोषिक देने के साथ प्रशस्ति पत्र भी दिया। पारितोषिक मिलने से प्रशिक्षण लेने वाली महिलाएं खुश तो हुई। लेकिन नाबार्ड के सहायक महाप्रबंधक से बांस के बने समानों की ब्रिकी के लिए मधुबन में एक केन्द्र स्थापित करने का भी मांग रखी। महिलाओं के प्रस्ताव पर जीएम ने भरोषा दिलाया कि इसके लिए जल्द राज्य सरकार से वार्ता किया जाएगा।
दरअसल, मधुबन के इन महिलाओं के लिए बांस के यही हस्तशिल्प उद्योग पूरे कोरोना काल के दौरान जीविकोर्पोजन सहयोगी साबित हुआ। क्योंकि बांस के बने सजावट के समानों की मांग अनलाॅक की प्रकिया के साथ झारखंड के अलावे दुसरे राज्य के जिलो में लगातार होती रही। फिर चाहे कार्यालय और घर के टेबुल पर कलम और अन्य समानों को रखने वाला मैट हो, या गुलदस्ता और नाव के डिजाईन वाला सजावट के समान। वैसे गौर करने वाली बात भी यह भी रही कि सजावट के ऐसे समानों की कीमत जहां बाजार में काफी अधिक दर पर है। वहीं मधुबन की इन महिलाओं द्वारा इन समानों को ही बेहद सस्ते पर बेंचा गया। और यही वजह रहा कि बांस से बने इन समानों की मांग अब काफी बढ़ चुकी है।