पहले अपनों का सितम अब सरकार की बेरुखी
करीब दो वर्षों से वृद्धाश्रम को राज्य सरकार ने नहीं दिया कोई फंड
आश्रम के वृद्धों की जीवन रक्षक दवाओं और राशन पर आ सकती है आफत
फंड क्यों हुआ बंद किसी अधिकारी के पास नहीं है जवाब
सरकार के एक पत्र ने आश्रम के संचालक की बढ़ाई चिंता
मनोज कुमार पिंटूः गिरिडीह
वृद्ध हुए माता.पिता को उनके बच्चों ने तो दर दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ ही दिया थाए पर अब सरकार की बेरुखी से उनके जीवन पर ही संकट के बादल गहराने लगे हैं। गिरिडीह के स्न्नेहदीप वृद्धाश्राम में रहने वाले इन वृद्धों से अब सरकार और प्रशासन ने भी मुंह फेर लिया है। पिछले महीने राज्य सरकार के महिला.समाज कल्याण मंत्रालय ने एक पत्र जारी कर गिरिडीह के मूक.बधिर.नेत्रहीन विद्यालय और वृद्ध आश्रम को फंड देने से हाथ खड़ा करते हुए इनके संचालन की जिम्मेवारी अब केन्द्र सरकार के भरोसे छोड़ दी है। लिहाजाए शहर के बस पड़ाव और नया सर्किट हाउस के समीप समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित स्न्नेहदीप वृद्ध आश्रम की आर्थिक हालत फिलहाल खस्ताहाल है। ऐसा होने के पीछे वजह क्या रहीए इसका जवाब भी स्थानीय प्रशासन के किसी अधिकारी के पास नहीं है। क्योंकि दो सालों से स्न्नेहदीप आश्रम को कोई सरकारी सहयोग नहीं मिला है। राज्य सरकार ने किसी मद के लिए फंड नहीं दिया। जिसे वृद्धों का देखभाल हो सकेंए और इन वृद्धों के देखभाल में लगे यहां के कर्मियों का मानदेय भुगतान किया जा सके। जबकि हर माह 50 हजार का खर्च आश्रम के सिर्फ 25 वृद्धों के तीनों वक्त के राशन.पानी और दवाओं पर होता है। जिसका वहन फिलहाल हजारीबाग की संस्था समाजिक समस्या निवारण एंव कल्याण उठा रही है। यही नही वृद्धाश्राम का भवन भी बेहद जर्जर हो चुका है। हर साल बारिश के दौरान छत्त का पानी वृद्धों के कमरे में टपकता है। इसके बाद भी अब तक किसी ने आश्रम की सुध नहीं लिया। इधर संस्था के सचिव महेश ने कहा कि अचानक फंड क्यों बंद किया गया। यह संस्था को भी समझ में नहीं आ रहा है। ऐसे में संस्था अब सीएम से मिलकर वृद्धाश्राम के संचालन में हो रहे समस्या को लेकर मिलेगीए और समस्याओं को उनके समक्ष रखेगी।
बतातें चले कि शहर के स्न्नेहदीप वृद्धाश्राम की शुरुआत नौ साल पहले साल 2011 में किया गया। आश्रम के शुरुआत होते ही इसके संचालन की जिम्मेवारी सरकार ने समाज परिवार कल्याण मंत्रालय को सौंपा था। जानकारी के अनुसार हर साल वृद्धाश्राम में रहने वाले वृद्धों और इनके देखभाल में रहने वालों के मानदेय के लिए राज्य सरकार सात लाख का आंवटन उपलब्ध कराती है। इन नौ सालों में वृद्धाश्राम में सात सहायकों को अस्थायी तौर पर न्यूनतम मानदेय पर रखा गया था। वहीं नौ सालों बाद अनलाॅक की प्रकिया के बाद पिछले महीनें राज्य सरकार ने वृद्धाश्राम समेत मूक.बाधिर और नेत्रहीन स्कूल को फंड देने से इंकार कर दिया। लेकिन गौर करने वाली बात तो यह है कि वृद्धाश्राम को करीब दो सालों से कोई फंड नहीं मिला है। अब सबसे अधिक परेशानी वृद्धों के राशन के साथ इनके जीवन रक्षक दवाओं पर पड़ रहा है।