वैज्ञानिक की नातिन नाना के विरासत देखने पहुंची गिरिडीह, कहा गर्व महसूस होता है कि उनके नाना एक महान वैज्ञानिक थे
नाना को सम्मान नहीं मिलने पर सरकारांे पर भड़की, तिजोरी नहीं खुलने को लेकर जाहिर की नाराजगी
गिरिडीहः
पौधों में जीवन की खोज करने वाले महान वैज्ञानिक आचार्य जगदीश चन्द्र बोस की नतिनी 80 वर्षीय सुप्रिया रॉय शनिवार को गिरिडीह पहुंची। कोलकाता के मॉडन हाई स्कूल की लेक्चरर सुप्रिया रॉय इस दौरान गिरिडीह के हर उन स्थानों का भ्रमण की। जहां से आचार्य जेसी बोस का जुड़ाव रहा। उनके साथ शहर के उद्योगपति संजय राजगढ़िया, लोजपा नेता राजकुमार राज, रुचिका राजगढ़िया और अक्षय राजगढ़िया भी मौजूद थे। वैज्ञानिक जेसी बोस की नतिनी सुप्रिया रॉय इस दौरान शहर के झंडा मैदान रोड स्थित जेसी बोस का पैतृक घर गई। जिसे अब विज्ञान भवन का स्वरुप देने के साथ सर्व शिक्षा अभियान का कार्यालय संचालित है। पैतृक घर के उस कमरे में गई जहां उनके द्वारा पौधों में किए गए शोध समेत कई और शोध के रिपोर्ट कई दशकों से एक बंद तिजोरी में पड़ा हुआ है। और अब तक नहीं खुला। तो वैसे कई और स्थानों में पहुंची, जहां गिरिडीह में रहते जेसी बोस ने रुके थे, और वक्त बीताया था। उनसे जुड़े ऐतिहासिक स्थलों को देखने के बाद उनकी नातिनी और कोलकाता की लेक्चरर सुप्रिया रॉय ने पत्रकारों से भी बातचीत की। और कहा कि गिरिडीह में दुसरी बार पहुंची है।
गिरिडीह में आने और अपने नाना के विरासत को देखने के बाद उन्हें गर्व महसूस होता है कि वो देश के एक महान वैज्ञानिक की नतिनी है। लेकिन दुख भी होता है कि उनके नाना को मंरणोपरांत जो सम्मान मिलना चाहिए। उसके लिए किसी ने पहल तक नहीं किया। किसी राजनीतिक दल ने इस और कभी ध्यान नहीं दिया कि जिस व्यक्ति ने देश समेत विश्व को एक बड़ी खोज कर विरासत के रुप में छोड़ गए है। उन्हें नोबेल पुरस्कार या और किसी बड़े अवार्ड से सम्मानित किया जा सके। बातचीत के क्रम में लोजपा नेता राजकुमार राज ने भी उनकी नतिनी के मांग का समर्थन किया। और ना ही किसी सरकार ने इस पर पहल किया कि गिरिडीह में उनके पैतृक घर में रखे तिजोरी को खोला जाएं। और तिजोरी में बंद पड़े रहस्य से देश के युवाआंे, छात्रों और वैज्ञानिकों को जानकारी मिल सके। पत्रकारों से बातचीत के क्रम में उनकी नतिनी ने बंगाल के साथ केन्द्र सरकार और राज्य के हेमंत सरकार पर भी जमकर भड़की, और कहा कि देश को इतना महत्पूर्ण शोध देने वाले वैज्ञानिक को उसका सम्मान मिलना बेहद दुखद है।