आदिवासी समाज के लोगों ने पूरे उत्साह के साथ मनाया सोहराय पर्व
- देर रात तक चलता पूर्जा अर्चना व विधि विधान का दोर
- तीसरे दिन जंगल में जाकर शिकार करने की परंपरा
गिरिडीह। बांग्ला पोष महीना में प्रत्येक वर्ष की तरह आदिवासियों का पर्व सोहराय महोत्सव सोमवार को गावां प्रखंड के सुदूरवर्ती क्षेत्र लोढियाटांड़, कुरहा व हरदिया के आदिवासियों ने हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाया। इस अवसर पर परिवार के दामाद द्वारा पारंपरिक तरीके से घर के द्वार पर फूलों से सजा खूंटी को गाड़ा गया। इसके बाद खूंटा में बैल को बांधकर उसे रिझाने का प्रक्रिया प्रारंभ की गई। नया सूप एवं नगाड़ा के सहारे बैलों को रिहानी का सिलसिला प्रारंभ हुई जो देर रात तक चली।
गांव के मोगला मरांडी के नेतृत्व में पूजा अर्चना की गई। इस दौरान आदिवासी समाज के लोगों के द्वारा बैल को खूंटे से बांधकर अपने परंपरागत तरीके से बैल को रिझाया गया।
तीसरे दिन जाले माहा कहा जाता है, यह पूरा दिन नाचने-गाने और खाने-पीने में व्यतीत होता है। सोहराय के अंतिम दिन को सकरात कहते हैं। इस दिन सेंदरा यानी शिकार करने की परंपरा है। घर के पुरुष सदस्य तीर-धनुष लेकर अगल-बगल के जंगलों में चले जाते हैं और शिकार करके गांव के मैदान में लाकर जमा करते हैं, गांव में इस दिन तीरंदाजी प्रतियोगिता भी होती है और उसमें जो विजयी होता है, उसे गांव का तीरंदाज घोषित किया जाता है, उस युवक को गांव वाले कंधे पर उठाकर गांव में घूमाते हैं, इस दौरान ढोल मांदर बजता रहता है।