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सुबे के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो का निधन होना झारखंड की राजनीति के लिए बड़ा ही दुखद

  • जनता के बीच टाइगर के रूप में पुकारे जाने वाले जगरनाथ महतो पार्टी के नेता कम जननेता अधिक

गिरिडीह। झारखंड के टाइगर कहे जाने वाले सुबे के शिक्षा मंत्री गुरुवार को आखिरकार जिंदगी की जंग हार गए। हालांकि वे एक शेर की तरह अंत समय तक मौत से लड़ते रहे थे। गुरुवार की सुबह करीब साढ़े नौ बजे चैन्नई के एक अस्पताल में इलाजरत शिक्षा मंत्री जगन्नाथ महतो की निधन होने की खबर जैसे ही लोगों तक पहुंची सभी आवाक रह गए। इस क्रम में राज्य सरकार के द्वारा जहां दो दिनों का राजकीय शोक की घोषणा की गई। वहीं विभिन्न शिक्षण संस्थानों व कार्यालयों के साथ साथ पार्टी कार्यालयों में श्रद्धांजली सभा का आयोजन किया गया। स्व0 जगन्नाथ महतो भले ही गिरिडीह जिले के डुमरी विधानसभा का नेतृत्व करते थे। लेकिन उनकी पुछ पूरे झारखंड में थी। क्योंकि जगरनाथ महतो सिर्फ एक नेता का नाम नही था बल्कि एक शख्सियत का नाम था। जो विधानसभा में हमेशा जनता की आवाज बनकर गुंजते थे। विधायक बनने से लेकर मंत्री बनने तक उनके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया था। वे सामान्य रूप से जनता के लिए हमेशा खड़े रहते थे।

स्व0 जगरन्नाथ महतो झारखंड दिग्गज नेता विनोद बिहारी महतो के काफी करीबी थे। झारखंड आंदोलन के दौरान कई बार उन पर कार्रवाई की गई। यहां तक कि कई बार उनको जेल भी जाना पड़ा था। विनोद बिहारी के निधन के बाद उन्होंने सांसद बने राज किशोर महतो के साथ झारखंड आंदोलन में मुखरता से हिस्सा लिया और हमेशा आंदोलन में अग्रसर रहे। यही कारण है कि सन दो हजार में समता पार्टी से चुनाव हारने के बाद उन्होंने झामुमो की सदस्यता ग्रहण की ओर दिशोम गुरु शिबू सोरेन के साथ झारखंड ओदालन में शामिल होने के साथ ही लगातार डुमरी विधानसभा से नेतृत्व करने लगे। इस दौरान डुमरी की जनता ने उन्हें न सिर्फ टाइगर का नाम दिया। बल्कि सम्मान और प्यार भी देते रहे। जिसके परिणाम स्वरूप झारखंड राज्य अलग होने के बाद से वे लगातार डुमरी विधानसभा से प्रतिनिधित्व करते चले गए। हालांकि इस बीच उन्होंने वर्ष 2014 और 2019 में गिरिडीह लोकसभा से भी चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें सफलता नही मिली।

स्व0 जगरनाथ महतो भले ही झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक बने हो लेकिन जनता के बीच हमेशा सामान्य प्रतिनिधि के रूप में ही माने गए। गिरिडीह व बोकारो की जनता उन्हें झामुमो के विधायक नही बल्कि जनता का विधायक मानते थे। उनके क्षेत्र से जुड़ी किसी भी मामले का निष्पादन पुलिस नही बल्कि वे स्वयं करते थे। लोगों को डांट फटकार भी लगाते थे। यही वजह है कि वर्ष 2019 में गिरिडीह लोकसभा से एनडीए के चन्द्रप्रकाश चौधरी से हारने के बाद भी 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें जीत मिली और वे सुबे के शिक्षा मंत्री बनाए गए। हालांकि दुर्भाग्यवश वर्ष 2020 में वैश्विक महामारी के दौरान पहले उनके भाई तारमी पंचायत के मुखिया वासुदेव महतो का निधन कोरोना काल में हुई। उसके बाद जगरनाथ महतो की भी तबियत बिगड़ी और उन्हें सितंबर 2020 में चेन्नई ले जाया गया। जहां नवंबर महिने में उनके लंग्स का ट्रांसप्लांट किया गया। इस दौरान उन्हें 20 दिनों तक लाइफ सर्पोट सिस्टम में रखा गया था। इलाज के आठ महिने के बाद वे 14 जून 2021 को स्वस्थ होकर वापस लौटे। लेकिन 14 मार्च को अचानक उनकी तबीयत फिर से बिगड़ गई और उन्हें एक बार फिर इलाज के लिए चेन्नई ले जाया गया। जहां इलाज के दौरान झारखंड के टाइगर माने जाने वाले जननेता जगरनाथ महतो का निध हो गया।

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