नहाय खाय के साथ सूर्याेपासना का महापर्व शुरू, बाजार में बढ़ी चहल पहल
- फल, बांस के बने सूप व पूजा सामग्री से सजा बाजार
कुलदीप कुमार
कोडरमा। सूर्याेपासना का महापर्व छठ का पर्व शुक्रवार को नहाय खाय के साथ शुरू हो गया है। छठ महापर्व बिहार झारखंड के साथ-साथ सभी बडे छोटे शहरों में और विदेशों में बडी पवित्रता व आस्था के साथ मनाया जाने वाला पर्व है। व्रती 36 घंटे निर्जला रहकर पर्व को करते हैं। शुक्रवार को नहाय खाय के साथ सभी लोग छठ महापर्व को लेकर तैयारियों में जुट गए हैं।
कोडरमा विधायक डाक्टर नीरा यादव भी इस महापर्व को अपने आवास पर कर रही हैं। वहीं बाजार पूजा के सामानों के अलावा नारियल, केला, सेब, पानीफल, सरीफा, महताब, शकरकंद, अदरख पत्ता, संतरा से सजा है। सूपों की बिक्री में भी इजाफा हुआ है। झुमरी तिलैया के ह्रदय स्थल झंडा चौक के स्टेशन रोड में दोनों तरफ दुकानें पूरी तरह सज चुकी है। वहीं छठ घाटों में सफाई जोर शोर से किया जा रहा है।
शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ पर्व की शुरुआत हुई है। जिसमें व्रती शरीर को शुद्ध कर सूर्याेपासना के लिए तैयार किया है। व्रती नदी या तालाब में स्नान कर कच्चे चावल का भात, चनादाल और कद्दू (लौकी या घीया) प्रसाद के रूप में बनाकर ग्रहण करती हैं।
खरना या लोहंडा (29 अक्तूबर) को
36 घंटे के निर्जला अनुष्ठान के संकल्प का दिन इसमें व्रती दिनभर निर्जला उपवास रहकर सायंकाल में पूजा कर प्रसाद ग्रहण करेंगी। मिट्टी के चूल्हे पर गाय के दूध व गुड़ से निर्मित खीर, ऋतुफल का प्रसाद व्रती द्वारा खुद बनाती है।
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ (30 अक्तूबर)को
केवल छठ में ही डूबते सूर्य को अर्घ देने का प्रावधान होता है। ऐसी मान्यता है कि सायंकाल में सूर्यदेव और उनकी पत्नी देवी प्रत्युषा की भी उपासना की जाती है। जल में खड़े होकर सूप में फल, ठेकुआ आदि रख कर अर्ध देने की परंपरा है।
उगते सूर्य को अर्घ (31 अक्तूबर)को
जल में कमर तक खड़े होकर सूर्य को अर्घ देने की परंपरा महाभारत काल से शुरू हुई है। सप्तमी तिथि को व्रती जल में कमर तक खड़े होकर उगते भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित करते हैं। ऐसी मान्यता है कि अर्घ देने से कुंडली में सूर्य मजबूत होते हैं। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र व धृति योग के साथ रवियोग में दूसरा अर्ध होगा। इसके साथ चार दिवसीय पर्व का समापन होता है।