गिरिडीह के बंद पड़े दो बड़े कोयला खदान मामले में दो सत्ताधारी दल जेएमएम और भाकपा माले आमने-सामने
- माले के धरना पर सदर विधायक भड़के, कहा कुकुरमुते की राजनीति करना ठीक नही
- जब कोयला खदान का इतिहास नही पता, तो उसे शुरू कैसे कराएंगे माले विधायक
- जब दोनो खदानों को सीटीओ मिलने की प्रक्रिया हुई शुरू तो राजनीति कर रही है माले
गिरिडीह। सीसीएल के अधीन बनियाडीह के बंद पड़े ओपनकास्ट और कबरीबाद कोयला खदान मामले में दो सत्ताधारी राजनीति दल अब आमने सामने आ चुके है। बंद पड़े दोनांे कोयला खदान मामले में पिछले दिनों भाकपा माले के बगोदर विधायक विनोद सिंह और माले नेताओ के धरने के दो दिन बाद मंगलवार को गिरिडीह के सदर विधायक सुदिव्य कुमार सोनू और पार्टी जिलाध्यक्ष संजय सिंह ने प्रेसवार्ता कर माले पर जमकर भड़ास निकाली।
प्रेसवार्ता के दौरान उन्होंने कहा कि जिन्हे गिरिडीह के दोनांे कोयला खदान के खनन का इतिहास तक नहीं पता है, वो अब राजनीति कर रहे है। सदर विधायक ने माले को कुकरमूते वाला राजनीति दल की संज्ञा देते हुए कहा कि दोनांे कोयला खदान सीटीओ के अभाव में बंद पड़े है, और इसी सीटीओ का एक तकनीक वर्ड tor है। सदर विधायक ने भाकपा माले के नेताओ को चुनौती देते हुए कहा कि भाकपा माले को इस tor का फूलफार्म बताना चाहिए। इसके बाद दोनों कोयला खदान को सीटीओ दिलाने की राजनीति करनी चाहिए। ऐसे ही इन गंभीर मामले में भाकपा माले के नेताओ और विधायक को कूदने से परहेज करना चाहिए।
सदर विधायक ने कहा कि गिरिडीह बनियाडीह का कबरीबाद खदान चार साल से बंद पड़ा है। जबकि ओपनकास्त खदान पिछले साल से बंद पड़ा है। लेकिन दोनो खदान बंद होने के बाद और राज्य में जेएमएम की सरकार रहते हुए वो अपनी जिम्मेवारी से दूर नहीं भागे है। लिहाजा, पिछले दो साल से दोनो खदान को सीटीओ दिलाने को लेकर दिल्ली और रांची की दौड़ लगा रहे है और जब जाकर सीटीओ मिलने की दिशा में पहल शुरू हुई है, तो माले राजनीति करने आ गई है।
कहा कि सीटीओ दिलाने को लेकर एक नही, बल्कि कई अड़चने थी। क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने साल 1980 में अपने एक फैसले में आदेश दिया था की जो खनन एरिया जंगल इलाके में पड़ता है। वहां खनन नही हो सकता है और इसी कारण राज्य वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने दोनांे खदानों को एनवायरमेंट क्लियरेंस देने से इंकार कर दिया था और इसी कारण केंद्र सरकार के जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से गिरिडीह के दोनों खदान को सीटीओ नही मिल रहा था।
कहा कि इन दोनो खदानों के इतिहास पर फोकस किया गया। जिसमे यह बात सामने आई की गिरिडीह के दोनो खदान से 1857 से कोयले का उत्खनन होता रहा है, और इतने लंबे कालखंड में कोयला उत्खनन एनसीडीसी से लेकर ईस्टर्न रेलवे तक संभाला। इससे जुड़े तथ्य जुटाने में दो साल का वक्त लगा। जिसके आधार पर राज्य वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने एनवायरमेंट क्लियरेंस उपलब्ध कराया और इसी के आधार पर केंद्र सरकार के जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने दोनो खदानों के शुरू किए जाने से जुड़ी स्वीकृति दी है।