अवैध माइका उत्खनन से नष्ट हो रहे है जंगल
- मौत के मुंह में जाकर नाबालिक व बूढ़े करते है माइका का खनन
- मशीनों से चीरा जा रहा है जंगलों का सीना
- चुप्पी साधे हुए है सरकार व प्रशासन
रिंकेश कुमार
गिरिडीह। जिले के गावां व तिसरी सीमावर्ती इलाकों में अवैध माइका उत्खनन धडल्ले से जारी है। जिससे गावां वन प्रक्षेत्र में कई जंगल व पहाड़ों को क्षति पहुंच रही है। प्रतिदिन इन जंगलों में दर्जनों से अधिक जेसीबी व पोकलेन मशीनो द्वारा इसका सीना चीरा जा रहा है और ट्रैक्टरों से हरे-भरे पेड़ कुचले जा रहे है। इतना ही नहीं खनन के दौरान भी माइका माफिया विस्फोटकों का प्रयोग कर रहे हैं। साथ ही 150 फीट से अधिक गहरे मौत के सुरंगों में कई नाबालिक बच्चे व बूढ़ों को जान जोखिम में डाल कर खनन करवाया जा रहा है। मगर इस पर कार्यवाही करने वाला तो दूर रोक लगाने वाला भी कोई नहीं है। अगर बात करें वन विभाग, खनन विभाग और पुलिस की तो सभी के सभी अपना उल्लू सीधा करने में व्यस्त है। किन्ही के पास अगर सवाल किया जाए तो या तो वह चुप्पी साध लेते है या फिर दूसरे के ऊपर जिम्मेवारी बता कर अपना पल्ला झाड़ लेते है।

बता दें की गावां व तिसरी के सीमावर्ती क्षेत्र असुरहड्डी, रंगमटिया, सेवाटांड़, मनसाडीह, थानसिंहडिह, पचरुखी पहाड़ी, मुर्गाे पहाड़ी, मैनी पहाड़ी, सतभुरख्वा पहाड़ी, चटैया, हदहदवा सहित दर्जनों जंगल व पहाड़ियों में इन दिनों माइका का धडल्ले से जेसीबी व पोकलेन मशीनों द्वारा अवैध उत्खनन जारी है। वहीं तीसरी थाना से आधा किलोमीटर दूर गमहरिया टांड़ में लगभग 4 प्रोसेसिंग यूनिट सह माइका गोदाम है। इसके अलावा खिजरी व बरवाडीह में भी लगभग आधे दर्जन गोदाम है जहां से रात्रि में ट्रकों के माध्यम से प्रतिदिन इसे गिरिडीह के बड़े गोदामों में भेजा जा रहा है।
बताते चलें कि पंचरुखी के खदान में लगभग एक वर्ष पूर्व एक बड़े खदान हादसे में 1 व मनसाडीह के जंगलों में 3 लोगों की मौत दबने से हो गई थी। जिसके बाद कुछ लोगों को विस्फोटकों को रखने व कारोबार करने के लिए गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। बावजूद इसके अब यह अवैध उत्खनन और विस्फोटकों का अवैध कारोबार पुनः शुरू हो गया है।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार तिसरी प्रखंड निवासी सिकंदर लाल, अशोक लाल, बीरेंद्र सेठ, चंदन कुमार, पंचदेव, अरविंद साव, मनीष गोयल, मोहन बरनवाल, बिनोद सेठ सहित दर्जनों माइका माफिया माइका के इस अवैध उत्खनन के कारोबार से जुड़े है और अपने बड़े बड़े गोदामों में माइका का प्रोसेसिंग कर इसे रात के अंधेरों में गिरिडीह भेज रहे है।
इन सब के बारे में जब वन विभाग के रेंजर, डीएफओ, डीएमओ जैसे उच्च अधिकारियों से फोन के माध्यम से जानकारी लेने का प्रयास किया गया तो सभी ने चुप्पी साध लिया तो किसी ने कॉल का जवाब नही दिया। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा की इन अधिकारियों को माइका माफियाओं द्वारा सांठ-गांठ कर लिया गया है। जिससे उनके हाथ पांव व जुबान पर ताले लगे है।
बहरहाल बात जो भी देखना यह है कि अवैध रूप से हो रहे माइका उत्खनन और इसके दौरान नष्ट हो रहे जंगलों को बचाने के लिए किसी अधिकारी की नींद खुलती है या नहीं।