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सरकारी कर्मियों के सहयोग से किया रक्तदान शिविर का आयोजन, ब्लड बैंक के कर्मी छोड़कर कोई नजर नहीं आया

जीवन देने वाले स्लोगन रक्तदान जीवनदान को कैसे भूल गया प्रशासन और रेडक्राॅस

काफी प्रतीक्षा के बाद ब्लड बैंक के कर्मियों ने व्हीट्टी बाजार के एक युवक से कराया रक्तदान

गिरिडीहः
समाजिक संस्थाओं के रक्तदान शिविर का प्रशासन और रेडक्राॅस तारीफ करते नहीं थकता है। अधिकांश शिविरों में रक्तदाताओं के साथ प्रशासनिक और रेडक्राॅस और कई बुद्धिजीवि पूरे उत्साह के साथ तस्वीरें खिंचाकर वाह-वाही बटोरने में कोई कसर नहीं छोड़ते। यहां तक कि ऐसे समाजिक संस्थाओं और उनके वाॅलियटर्सं को प्रशासन द्वारा सम्मानित किया भी जाता है। लेकिन बुधवार को गिरिडीह रेडक्राॅस ने शहर के नगर भवन में सरकारी कर्मियों द्वारा रक्तदान शिविर का आयोजन किया था। जिसमें समाहरणालय के कर्मियों को नगर भवन में रक्तदान करना था। लेकिन पूरा नजारा ही अलग था। तो ना ही सरकारी कर्मी ही रक्तदान करने पहुंचे। और ना ही रेडक्राॅस के पदाधिकारी व स्थानीय प्रशासन के कोई अधिकारी ही शिविर के आयोजन स्थल में दिखें। जबकि ब्लड बैंक के कर्मी रघुनंदन विश्वकर्मा, जगदीश कुमार, सुधीर कुमार और मो. एजाज सुबह 10 बजे से नगर भवन में मोर्चा संभाल चुके थे। शिविर की शुरुआत सुबह साढ़े 10 बजे से होना था। रेडक्राॅस के अधिकारिक व्हाटसअप ग्रुप में बकायदे इसकी जानकारी तक दिया गया था। सुबह 10 बजे से रक्तदाता सरकारी कर्मियों की प्रतीक्षा कर रहे ब्लड बैंक के कर्मी इस दौरान दोपहर तीन बजे तक नगर भवन में रुके रहे थे। इसका कारण इस दौरान जब कर्मियों से पूछा गया। तो कर्मियों ने कहा कि उन्हें सुबह 10 बजे नगर भवन पहुंचने को कहा गया था। लिहाजा, ब्लड बैंक के सारे कर्मी वक्त पर पहुंच चुके थे। लेकिन दोपहर तीन बजे तक कोई रक्तदान करने वाले नहीं पहुंचे। और ना ही रेडक्राॅस के पदाधिकारी।


ऐसे में ब्लड बैंक के कर्मियों ने किसी प्रकार व्हीट्टी बाजार के एक युवक मो. नवाब से ही रक्तदान कराकर औपचारिकता पूरा किया। जबकि ब्लड बैंक के कर्मियों ने एक-दो बार रेडक्राॅस के सचिव राकेश मोदी को फोन किया। तो कई सदस्यों को भी। लेकिन किसी के और से कोई संतुष्ट जवाब नहीं मिला। इसके बाद ब्लड बैंक के कर्मी मो. नवाब का रक्त जमाकर वहां से चले गए। बहरहाल, रक्तदान की कमी को पूरा करने और रक्तदाताओं का उत्साह बढ़ाने के नाम पर एक तरफ सरकार करोड़ो रुपये खर्च करती है। तो दुसरी तरफ प्रशासन और रेडक्राॅस के ज्वांईट रक्तदान शिविर की अहमियत यहां गायब हो जाती है। ऐसे में इतने महत्पूर्ण अभियान के नाकामी का जिम्मेवार किसे माना जाएं? संभवत इसका जवाब किसी से मिल सकें।

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