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जीवन रक्षक दवाओं के लिए फंड नहीं मिलने और नया स्टॉक नहीं आने से गिरिडीह सदर अस्पताल में हुआ दवाओ ंकी कमी

पिछले साल ही मिला था 36 लाख का फंड, नहीं आया कोई और नया आंवटन

मनोज कुमार पिंटूः गिरिडीह
दुसरे दौर के महामारी में जब गिरिडीह सदर अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी महसूस हुई। तो पीएम केयर्स फंड से अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट लगा। और पाईप लाईन का कार्य भी पूरा किया गया। वैसे स्थानीय सदर विधायक सुदिव्य कुमार सोनू ने हमेशा दावा किया कि सदर अस्पताल में हर स्तर पर स्वास्थ सुविधा को मजबूत किया जाएगा। लेकिन हकीकत इसके अपोजिट है। क्योंकि इस वित्तीय साल में स्वास्थ मंत्रालय ने जीवन रक्षक दवाईयों का कोई नया स्टॉक नहीं भेजा है। और ना ही कोई फंड ही सदर अस्पताल को मिल पाया है। जिसे अस्पताल प्रबंधन अपने स्तर से दवाईयों की खरीदारी कर सके। सिर्फ पिछले साल ही गिरिडीह सदर अस्पताल को महज 36 लाख रुपए दवाओं के क्रय करने के मद में मिले थे। इसके बाद कोई नया फंड और कोई नया स्टॉक भी अस्पताल को नहीं मिला था। लिहाजा, अस्पताल के दवा स्टोर से लेकर स्टॉक भंडारण में दवाईयों की कमी होती जा रही है। और अब हालात यह है कि अस्पताल में दर्दनिवारक गोली और कैप्सूल की कमी हुई है। तो समान्य तौर पर बुखार के लिए खाने वाले दवाई पारासीटामोल जैसे मामूली दवाई मरीजों को नहीं मिल पा रहा। कई और गंभीर बीमारियों की दवा, मल्हम और इजेंक्शन तो दूर की बात है।
वैसे चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में दवाओ की कमी खुद सिविल सर्जन डा. शिवप्रसाद मिश्रा भी स्वीकार रहे है। लेकिन यह नहीं बता पा रहे है कि अस्पताल में दवाओं की कमी कब तक दूर हो पाएगा। क्योंकि सिविल सर्जन का कहना है कि गिरिडीह सदर अस्पताल को दवाओं का स्टॉक रांची से ही भेजा जाता है। कई बार ऐसा होता है कि जब दवाईयों का स्टॉक खत्म होने को रहता है तो स्वास्थ मंत्रालय फंड भेजकर दवाईयों को खरीदने की अनुमति देता है। इसके लिए ऑनलाईन पोर्टल के माध्यम से स्वास्थ मंत्रालय नजर रखता है। इस बीच दवाओं की कमी हुई है तो गिरिडीह स्वास्थ विभाग पिछले कई महीनों में इसके लिए पत्राचार कर चुका है। फिलहाल कोई पहल नहीं किया गया है।
जबकि हर रोज डेढ़ सौ से दो की संख्या में अस्पताल में समान्य बीमारियों से ग्रसित चिकित्सकों से दिखाने आते है। और जितने मरीज आते है उनमें 60 फीसदी मरीज अस्पताल से मिलने वाले दवाओं पर ही निर्भर रहते है। लेकिन यहां तो दवाओं का कमी ही होता जा रहा है। इतना ही नही सदर अस्पताल से मातृत्व शिशु स्वास्थ केन्द्र और प्रखंडो के स्वास्थ केन्द्रों तक जीवन रक्षक दवाओं की आपूर्ति नहीं हो पा रहा है। वैसे गौर करने वाली बात यह है कि हर साल चार-चार माह के अतंराल में जिला स्वास्थ समिति की बैठक होती है। जिसमें कई स्वास्थ सुविधा बढ़ाने से जुड़े कई मुद्दों पर निर्णय लिया जाता है। लेकिन साल के शुरुआत में ही एक बार बैठक हुआ। इसके बाद स्वास्थ समिति का कोई और बैठक नहीं हो पाया। जिसे दवाओं के खरीदने से जुड़े कोई निर्णय हो सके।

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