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चिराग दा के दस्ता द्वारा कैदी वाहन पर हमला मामले में 11 साल बाद गिरिडीह कोर्ट ने सुनाया दो नक्सलियों को आजीवन कारावास की सजा

गिरिडीहः
कैदी वाहन ब्रेक कांड की घटना के 11 साल बाद गिरिडीह कोर्ट ने दो नक्सलियों को अलग-अलग धाराओं में सजा सुनाया है। और 98-98 हजार का जुर्माना भी लगाया है। गिरिडीह के नवम अपर जिला एंव सत्र न्यायधीश नीरजा आश्री के कोर्ट ने बुधवार को कैदी वाहन पर हमला करने के आरोप मंे दो नक्सलियों को सजा सुनाया है। जिन माओवादियों को सजा सुनाया गया है। उनमें रुदो यादव और छोटका मंराडी शामिल है। जबकि चार को साक्ष्य के अभाव में बरी भी कर दिया है। कोर्ट द्वारा बरी किए गए आरोपियों में बबलू सिंह, गुलजार मियां, बाबूलाल बेसरा और जीतेन्द्र यादव शामिल है। नीरजा आश्री के कोर्ट ने इन चारों आरोपियों को पुलिस अनुसंधान के चार्जशीट में साक्ष्य नहीं रहनेे के कारण बरी किया है। हालांकि नवम एडीजे के कोर्ट में बुधवार को सजा सुनाने के दौरान बचाव पक्ष के अधिवक्ता उमाशंकर प्रसाद, पारसनाथ साव ने कोर्ट से कम सजा की अपील किया। लेकिन लोक अभियोजक सुधीर कुमार के दलीलों के बाद नवम एडीजे के कोर्ट ने बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं के अपील को खारिज कर दिया। और दोनों नक्सलियों को रुदो यादव और छोटका मंराडी को आजीवन कारावास के साथ 98-98 हजार जुर्माना भरने के साथ 10 साल, सात साल, तीन साल और दो साल की सजा सुनाई गई। बताते चले कि साल 2012 में ही कोर्ट से पेशी के बाद कैदियों से भरा वाहन औद्योगिक क्षेत्र स्थित मोहनपुर जेल जा रहा था। क्योंकि 2012 में घटना के दिन आठ नक्सलियों की कोर्ट में पेशी था। और पेशी के बाद जब कैदी वाहन कैदियांे को लेकर जेल वापस जा रहा था। तो इसी दौरान अजीडीह मोड़ में जमुई-गिरिडीह के मारे गए जोनल कमांडर चिराग दा के दस्ते ने कैदी वाहन पर हमला बोल दिया। घटना दोपहर को हुआ था। लेकिन घटना के दौरान पूरे इलाके में अफरा-तफरी मच गई। क्योंकि चिराग दा ने अपने दस्ते के साथ कैदी वाहन में ताबड़तोड़ फायरिंग बम विष्फोटक कर आठ माओवादियों को छुड़ा कर फरार हो गया था। तो एक दुसरे मामले के कैदी की मौत इसी गोली फायरिंग में हुई थी। जबकि कुछ पुलिस कर्मियों की मौत भी हुआ था। घटना पूर्व एसपी अमोल वेणुकांत होमकर के कार्यकाल में हुआ था। लेकिन घटना के बाद उस वक्त गिरिडीह पुलिस पर गंभीर सवाल खड़े हुए थे। और मामले की जांच आईपीएस अधिकारी मुरारी लाल मीणा और सुमन गुप्ता को सौंपा गया था। वहीं 11 साल बाद आएं फैसले को लेकर बुधवार को नवम एडीजे के कोर्ट में चर्चा भी रहा।

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