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झारखंड राज्य अलग होने के 21 वर्ष बाद भी लक्ष्मीबथान में है मूलभुत सुविधाओं का अभाव

  • नदी में चुँवा खोद कर या बारीश का पानी पीने को विवश है ग्रामीण
  • नही है सड़क की कोई व्यवस्था, बीमार पड़ने पर खटिया में टांग कर ले जाते है कोसो दूर अस्पताल
  • कुछ दिन पूर्व अस्पताल जाने के क्रम में गर्भवती की हुई थी मौत, नेताओं व अधिकारियों का लगा था जमावड़ा

रंजन कुमार
गिरिडीह। जिले के तिसरी गांवा प्रखंड के सिमा पर स्थित लक्ष्मीबथान आदिवासी बहुल गांव में मूलभूत समस्याओं का अंबार लगा हुआ है। झारखंड अलग होने के 21 साल बीतने के बाद भी आज लक्ष्मीबाथन के ग्रामीण परेशानी का दंश झेल रहे है। न ही उनके लिए पानी की व्यवस्था है और न ही स्वास्थ्य सेवाओं की। आलम यह है कि सड़क नहीं रहने पर ग्रामीण पैदल ही आवागमण करने को मजबूर है।


कुछ माह पूर्व गांव की एक गर्भवती महिला सुरजी मरांडी लचर व दुर्गम रास्ता से पैदल ले जाने के दौरान रास्ते में ही दम तोड़ दी थी। जिसके बाद अखबार में यह मामला सुर्खियां में रहा। स्थानीय विधायक सह झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी व माले के पूर्व विधायक राजकुमार यादव सहित कई उच्च अधिकारी गांव पहुंच कर स्थिति का जायजा लिये। जिससे ग्रामीणों को आस जगी की अब गांव की तस्वीर व तकदीर बदल जायेगी। लेकिन कुछ महीने बितने के बाद ही मामला ठंडा हो गया और आज भी लोग पहले की तरह जीने को विवश है।

बता दंे कि लक्ष्मीबथान गांव में आदिवासी जाति के पचास परिवार रहते है। गांव में न चापाकल है और न ही कूप है और न ही गांव से प्रखंड मुख्यालय जाने का रास्ता। इस आधुनिक युग मे किसी भी कंपनी का नेटवर्क तक नही है। लक्ष्मीबथान के ग्रामीण ननकी हंसदा, बड़की मरांडी ने बताया कि गांव के लोग पीने के लिये नदी में चुँवा खोद कर पानी पीने को विवश है और बरसात के समय बरसाती पानी को पीने को मजबूर है।

गांव मेें यदि कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाता है तो लोग उन्हें खटिया में टांग कर गांवा अस्पताल ले जाना पड़ता है। क्योंकि गांव से नजदीक गांवा अस्पताल ही पड़ता है। तिसरी अस्पताल काफी दूर है और रास्ता काफी दुर्गम भी है। तिसरी प्रखंड के लोकाय पंचायत के लक्ष्मीबथान गांव की स्थिति आज भी अंग्रेज जमाने की जैसी है। ग्रामीणों की आवाज को कोई सुनने वाला नही है।

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