सम्मेद शिखर प्रकरण के बीच मधुबन गेस्ट हाउस में हुई हाई लेवल की बैठक
- डीसी, एसपी व सदर विधायक के अलावे जैन समाज के कई प्रतिनिधि हुए शामिल
- बैठक में आपसी सामंजस्य बनाते हुए सभी विवाद को समाप्त करने का किया गया प्रयास
- एसडीएम की अध्यक्षता में कोर कमिटी बनाने का लिया गया निर्णय
- पारसनाथ पर स्वामित्व को लेकर कोई विवाद नहीं: डीसी
- पारसनाथ से जुड़ी है जैन और आदिवासी समुदाय की आस्था: विधायक
गिरिडीह। जैन धर्म के सर्वाेच्च तीर्थस्थल सम्मेद शिखर प्रकरण के बीच सम्मेद शिखर पारसनाथ के स्वामित्व के विवाद का अंत रविवार को उपायुक्त की अध्यक्षता में हुई बैठक में करने का प्रयास किया गया। रविवार को सम्मेद शिखर मधुबन के गेस्ट हाउस में हुई बैठक में डीसी नमन प्रियेश लकड़ा, सदर विधायक सुदिव्य कुमार सोनू, अपर समाहर्ता विल्सन भेंगरा, डुमरी एसडीएम प्रेमलता मुर्मू, एसडीपीओ मनोज कुमार और मधुबन थाना प्रभारी के साथ प्रोबेश्नल आईएएस उत्कर्ष कुमार समेत कई अधिकारी और सम्मेद शिखर के धार्मिक संस्थाओं में गुणायतन ट्रस्ट के सुभाष जैन, तपोभूमि के दीपक मेपानी समेत कई जैन संस्था के प्रतिनिधि शामिल हुए। करीब डेढ़ घंटे तक चले बैठक में श्री सम्मेद शिखर जी को लेकर कई महत्पूर्ण निर्णय लिए गए। साथ ही विगत कई दिनों से चल रहे विवाद को शांत करने की पहल की गई।
इस दौरान उपायुक्त श्री लकड़ा ने कहा कि बैठक में सभी लोग थे और उन्होंने अपनी भावनाओं को व्यक्त किया गया। साथ ही एक दूसरे को लेकर चलते हुए जैन समाज व आदिवासियों व मूलवासी के लिए पारसनाथ पर्वत पर पूर्व की भांति भ्रमण और तीर्थयात्रा करेंगे। कहा कि खास तौर पर स्वामित्व के मुद्दे पर कोई विवाद नही रह गया है। बताया कि डुमरी एसडीएम के नेतृत्व में एक कोर कमिटी का गठन किया गया है। जिसमे श्वेतांबर और दिगंबर जैन समाज के प्रतिनिधियों के साथ सम्मेद शिखर मधुबन के सामाजिक संस्था के प्रतिनिधि भी शामिल रहेंगे और हर छोटे विवाद का निपटारा इसी कोर कमिटी के माध्यम से किया जाएगा। कहा की सम्मेद शिखर पार्श्वनाथ में आदिकाल से जो व्यवस्था चली आ रही है। वो पहले की तरह ही चलता रहेगा। इसमें कोई फेरबदल नहीं होना है। आदिवासियों का सोहराय और मकर संक्रान्ति का पर्व भी शांतिपूर्ण माहौल में मनाया जाएगा। इसके लिए पुलिस जवानों को तैनात किया जा चुका है।
इधर बैठक में उपस्थित सदर विधायक सुदिव्य कुमार सोनू ने कहा कि श्री सम्मेद शिखर पार्श्वनाथ में जैन समाज का भी तीर्थस्थल है। वहीं आदिवासी समुदाय का मरांग बुरू तीर्थस्थल भी है। कहा कि यहां जैनियों के साथ साथ आदिवासियों की भी धार्मिक आस्था जुड़ी हुई है और दोनों का सम्मान होना चाहिए। कहा कि आज से नही, बल्कि ब्रिटिश शासन के गजट से लेकर कई दशकों तक यह व्यवस्था बना हुआ है। इसमें किसी तरह का फेरबदल नहीं किया जा सकता है।