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गिरिडीह सदर प्रखंड में मनरेगा में सात करोड़ 88 लाख लूट मामले में दोषी पदाधिकारियों और कर्मियों को शोकॉज क्या बचाने का नया जुगाड़

गिरिडीहः
गिरिडीह में मनरेगा योजना में तो लूट मचा हुआ है ही। लेकिन हालात ऐसे है कि मनरेगा योजना में इस्तेमाल किए जाने वाले समानों में भी बड़े पैमाने पर लूट मचा हुआ है। जिला मुख्यालय का सदर प्रखंड इसकी बानगी है, जबकि सदर प्रखंड में संचालित हर योजनाओं पर खुद नजर सदर विधायक सुदिव्य कुमार सोनू खास तौर पर रखते है। इसके बाद प्रखंड विकास पदाधिकारी दिलीप महतो और प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी रॉ मैटेरियल की खरीदारी के नाम पर सात करोड़ 88 लाख डकार गए। जबकि डीडीसी शशिभूषण मेहरा का दावा है कि मामले में सदर प्रखंड को सिर्फ 95 लाचा की राशि आवंटित किया गया था। इसके बाद भी सदर प्रखंड के पदाधिकारियों और कर्मियों ने सात करोड़ 88 लाख डकार लिया। वैसे डीडीसी का दावा सही है गलत, यह तो डीडीसी ही जाने। लेकिन सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सात करोड़ 88 लाख के अधिक निकासी में अब तक डीडीसी कार्यालय के कर्मियों के मिलीभगत का कोई पुख्ता प्रमाण सामने नहीं आया है। लिहाजा, डीसी नमन प्रियेश लकड़ा ने कड़े तेवर में साफ तौर पर कहा कि हर भुगतान का प्रावधान एफटीओ के माध्यम से होता है। और सात करोड़ 88 लाख के निकासी का मामला एफटीओ से हटकर है। लिहाजा, किसी सूरत में दोषी पदाधिकारियों और कर्मियों को बख्शा नहीं जाएगा। जांच में जिनके नाम सामने आते है उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। तो दुसरी तरफ डीडीसी मेहरा ने कहा कि प्रखंड विकास पदाधिकारी और बीपीओ को शोकॉज किया गया है। शोकॉज का जवाब सही नहीं आने पर दोनों के खिलाफ निलबंन का अनुशंसा किया जाएगा। वैसे इतने बड़े स्तर हुए राशि लूट के मामले में दोषी पदाधिकारी और कर्मियों को सिर्फ शोकॉज कर जवाब मांगना जिले के वरीय अधिकारियों को भी सवालों के घेरे में खड़ा कर रहा है। क्या दोषियों को बचाने की नया पटकथा तैयार किया जा रहा है?
दरअसल, रॉ मेटेरियल खरीदारीे के लिए सदर प्रखंड को वित्तीय साल 2022-23 के लिए 95 लाख का फंड डीडीसी के द्वारा दिया गया था। लेकिन प्रखंड के पदाधिकारियों और कर्मियों ने मिलीभगत कर पिछले कुछ महीनों में सात करोड़ 88 लाख का अतिरिक्त निकासी कर लिया। मनरेगा योजना के रॉ मेटेरियल के खरीदारी को लेकर हुए इस बड़े गड़बड़ी का खुलासा तब हुआ, जब कई दुसरे प्रखंडो में अतिरिक्त फंड का मांग किया। तो फंड ही पर्याप्त नहीं था। और जब डीडीसी ने मामले की जांच किया, तो सात करोड़ 88 लाख की अवैध निकासी हो चुका था। मामला हाईप्रोफाईल होता देख डीडीसी ने मामले की जानकारी डीसी को दिया।

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