गिरिडीह के धनवार में धर्मांतरण की चर्चा से माहौल गर्म, प्रसाशन अलर्ट
- कोरोना संक्रमण के दौरान लोगों को बचाने को लेकर आया मामला सामने
गिरिडीह। गिरिडीह के धनवार प्रखंड के एक गांव से भारी संख्या में सनातन धर्म को छोड़ ईसाई धर्म अपनाने की तैयारी की चर्चा है। धर्म परिवर्तन के चर्चा का कारण कोरोना महामारी से लोगों को बचाने को लेकर सामने आया है। इसके बाद धनवार थाना पुलिस पूरे मामले पर नजर रखे हुए है। चर्चा है कि गांव के करीब चार सौ की संख्या में दलित परिवार ईसाई धर्म अपनाने वाले है। जिसकी तैयारी भी लोगों ने कर ली है। हांलाकि इसकी सूचना मिलते ही स्थानीय पुलिस अलर्ट मोड़ में आ गई है।
इस बाबत सूचना मिलने पर रविवार को धनवार व घोड़थम्बा पुलिस पदाधिकारी मामले की पड़ताल करने में जुटे थे। मामले की जानकारी लेने पर वैसे ग्रामीणों ने भी ये स्वीकारा की महामारी से निजात दिलाने के लिए कुछ ईसाई मिशनरियां धर्मांतरण के खेल भोलेभाले ग्रामीणों के साथ खेल रही है। जानकारी लेने पर ही ग्रामीणों ने ये भी बताया की वे लोग सप्ताह के हर मंगलवार को चिराग जला ईश्वर की पूजा करते हैं। जिसमे धनवार प्रखंड के विभिन्न गांवो के दर्जनों लोग ईश्वर की पूजा में बढ़चढ़ कर भाग लेते हैं। गांवा के चरकी निवासी के बताए मार्ग पर महीनों से ईश्वर की पूजा करते आ रहे हैं।
बताया कि ईश्वर की पूजा करने के बाद कई लोगों की मनोकामना पूरी भी हुई है। महामारी के साथ लकवा, टीवी, केंसर आदि की बीमारी स्वतः लोगांे का ठीक हो चुका है। गांव में ईश्वर पूजा की शुरुवात करने वाले कमलेश राय (बदल हुआ नाम) ने बताया कि वह खुद लकवा ग्रस्त थे। चल फिर नही पाते थे। खाट पर लेटे रहते थे। उसकी पत्नी भी टीवी बीमारी से ग्रसित थी। चरकी के रहने वाले अपने रिश्तेदार के बताए मार्ग पर अपनी घर पर ईश्वर की पूजा करने लगे तो दोनो पति-पत्नी ठीक हो गए। जिसके बाद पूजा करने के लिए उसके घर जनाधार जुटने लगा। वहीं एक महिला ने बताया कि वह सही से देख नही पाती थी। इससे जुड़ी तो उसका आंख झलना बंद हो गया और आज वह सही से देखने भी लगी है। चश्में की भी आवश्यकता अब उसे नही पड़ता। उसकी गांव की एक और महिला की माने तो वह पहले बीमार रहा करती थी। काफी खर्च की लेकिन उसका बीमारी ठीक नही हुआ। ईश्वर पूजा की सदस्य बनी तो बीमारी ठीक हो गया।
धर्मांतरण की चर्चा के सवाल पर ग्रामीणों ने उसे अफवाह बताते हुए कहा कि जबसे वे लोग ईश्वर की पूजा करना शुरु किए है। तब से गांव में बदलाव हुआ है। वे लोग ओझा गुनी के पास नही जाते, भगत व भगतिन की बात नही सुनते और दूसरे पढ़ती से उपासना करते है।