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हिडेनवर्ग मामले के बाद एलआइसी यूनियन के नेता आए सामने कहा

  • एलआईसी को लेकर कुछ राजनीतिक दल कर रहे भ्रामक प्रचार
  • अडाणी समूह में निवेश कर एलआईसी को भी हुआ फायदा
  • मैच्यूरिटी पूरा हुआ है तो आएं बीमाधारक, मिलेगा पूर्ण भुगतान

गिरिडीह। अडाणी समूह मामले में हिडेनवर्ग विवाद को बढ़ता देख बुधवार को गिरिडीह एलआईसी के कर्मचारी सामने आएं और प्रेसवार्ता कर एलआईसी के बीमाधारकों को कई महत्पूर्ण जानकारी दिया। एलआईसी के यूनियन नेता धर्मप्रकाश, अनुराग मुर्मु, शंकर कुमार, लियाफी के संयुक्त सचिव प्रदीप साव समेत यूनियन नेताओं ने हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद अडानी के विभिन्न कंपनियों के शेयर के भाव गिरने को लेकर स्पष्ट करते हुए कहा कि इससे एलआईसी के निवेशकों पर कोई प्रभाव नही पड़ा है। कहा ही कुछ राजनीतिक पार्टियों एवं मीडिया ने कहा कि हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद अडानी के विभिन्न कंपनियों के शेयर के भाव गिरने एलआईसी और स्टेट बैंक में निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ेगा। जबकि एलआईसी में सभी बीमा धारकों का पैसा सुरक्षित है।

कहा कि एलआईसी कोई छोटी बीमा संस्था नहीं है, जो किसी बड़े उद्योगपति के कंपनी में अरबों का निवेश करने के बाद डूब जाएं। हिडेनवर्ग का पूरा रिपोर्ट ही भ्रामक और तथ्यहीन है। लेकिन अडाणी मामले में हिडेनवर्ग को लेकर भ्रामक रिपोर्ट प्रकाशित किए जाने के बाद हिडेनवर्ग का मुनाफा करोड़ो तक जरुर पहुंच गया है।

कर्मचारी नेताओं ने जानकारी देते हुए कहा कि कुछ राजनीतिक दलों द्वारा एलआईसी के बीमाधारकों में भय पैदा करने का प्रयास कर रहे है। जबकि हकीकत यह है कि पूरे देश में एलआईसी की 42 लाख करोड़ से अधिक का पूंजी है। इतना ही नही, बीमाधारकों का मैच्यूरिटी पूरा होने पर एलआईसी एक-एक बीमाधारकों को वक्त पर मैच्यूरिटी का भुगतान भी कर रहा है। अभी तक किसी बीमाधारक के मैच्यूरिटी डूबने का कोई भ्रामक जानकारी एलआईसी को नहीं मिला है।

कहा कि एलआईसी ने अडानी समूह के कंपनियां में 36 हजार 474 करोड़ का निवेश किया। और यही निवेश बढ़कर 57000 हजार करोड़ पहुंच चुका है। दावा करते हुए कहा कि अडाणी समूह के शेयर से एलआईसी को हर साल करोड़ो का फायदा भी हो रहा है। अब ऐसे में चंद राजनीतिक दल अपनी राजनीतिक रोटियां सेकते हुए भ्रामक दावे कर रहे है कि प्लॉन लेने वाले बीमाधारकों के पैसे डूबने वाले है। लेकिन एलआईसी दावा करती है कि अगर किसी बीमाधारक का मैच्यूरिटी पूरा हुआ है तो वो आएं, और अपना भुगतान लेकर जाएं। लेकिन एलआईसी के तमाम यूनियन इस बात का भी विरोध करती है कि सरकार जिस प्रकार सरकारी उपक्रमों को पूंजीपतियों के हाथों सौंप रही है उसे नौकरी पर आने वाले दिनों में बड़ा खतरा मंडरा सकता है।

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