विहिप ने क्षेत्रीय भाषा की सूची से उर्दू को हटाने की मांग को लेकर राज्यपाल के नाम ज्ञापन
- कहा कि झारखंड सरकार तुष्टिकरण के तहत उर्दू भाषा को दे रही है क्षेत्रीय भाषा का दर्जा
गिरिडीह। उर्दू भाषा को क्षेत्रीय भाषा की सूची से हटाने की मांग को लेकर विश्व हिंदू परिषद के तिसरी इकाई ने बुधवार को महामहिम राज्यपाल के नाम बीडीओ को ज्ञापन सौपा गया। ज्ञापन में कहा कि उर्दू एक विदेशी व उर्दू शब्द मूलतः तुर्की भाषा है। तुर्काे के लिये यह भाषा भारत आया है। उर्दू भाषा दिल्ली सल्तनत 1206-1526 व मुगल साम्राज्य में 1526-1858 के दौरान धार्मिक गतिविधि में मुस्लिमो के बीच प्रयोग होती थी। जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा अपने अपने क्षेत्र का स्थानीय, प्राचीन व परंपरागत भाषा होती है।
झारखंड प्रदेश में क्षेत्रीय भाषा के रूप में मुख्यतः नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनीया व कुरमाली है। जो अति प्राचीन भाषा है। उर्दू विदेशी भाषा है जो विदेशी आक्रांताओं के द्वारा देश में आक्रमण के बाद साम्राज्य स्थापित कर अपने भाषा को देश मे लागू करने का प्रयास की गई थी। ऐसे में उर्दू किसी भी मायने में झारखंड प्रदेश का क्षेत्रीय भाषा नही हो सकती है। मुस्लिम जिस क्षेत्र में रहते है वे उसी क्षेत्र के भाषा का प्रयोग करते है। अलग अलग क्षेत्र में रहकर अलग अलग क्षेत्र का भाषा का प्रयोग करते है। ऐसे में उनके लिये उर्दू भाषा का क्षेत्रीय भाषा घोषित करना कहा का प्रावधान है।
कहा कि झारखंड सरकार तुष्टिकरण की नीति के तहत ही इस तरह के प्रावधानों को झारखंड में लाकर सामाजिक विद्वेष फैलाने का काम कर रही है। आवेदन में विश्व हिंदू परिषद के तिसरी प्रखंड अध्यक्ष शिवा शंकर साहू, जिला सह मंत्री हरीश प्रसाद साह का हस्ताक्षर शामिल है।