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ऐपवा का दो दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला हरिचक में शुरू

  • शनिवार को मनाया जायेगा संगठन का स्थापना दिवस
  • महिला अधिकार, सुरक्षा सहित देश के नफरती माहौल के बीच महिलाओं की भूमिका विषय पर हुई चर्चा

गिरिडीह। अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) का दो दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला शुक्रवार को हरिचक संगठन के झंडोत्तोलन तथा शहीदों को श्रद्धांजलि देने के साथ शुरू हुआ। कार्यक्रम की शुरूआत सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर, सावित्री बाई फुले और फातिमा शेख को एक मिनट का मौन रख कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

कार्यशाला में ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी, राज्य सचिव गीता मंडल, राज्य अध्यक्ष झारखंड सविता, राज्य सह-सचिव जयंती चौधरी, राज्य सह सचिव सुषमा, राज्य कमिटी सदस्य एती देवी, शांति सेन, शिनगी खलखो, अनिता देवी, सरिता साव, सीमा देवी, अनिता बेदिया, कांति देवी, नंदिता भट्टाचार्य, कौशल्या दास, कांति देवी, रेणु रामानी, फुलू देवी, जासो देवी, रेखा देवी के अलावे आइसा नेत्री अजरानी निशानी और दिव्या भगत मौजूद थी। वहीं राज्य कमिटी सदस्य प्रीती भास्कर द्वारा कार्यशाला का संचालन किया गया।
कार्यशाला के दौरान वर्तमान दौर में सत्ता का नफरती-सांप्रदायिक चरित्र और महिलाओं के शोषण सहित कई बिन्दूओं पर चर्चा की गई। मुख्यवक्ता मीना तिवारी ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए ऐपवा की राजनीति और विचाराधारा से अवगत कराया।

ऐपवा के आंदोलन के मुख्य मांगों को रखते हुए कहा गया कि केजी (आंगनबाड़ी) से पीजी (पोस्ट ग्रेजुएट) तक छात्रों को मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना। स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को नियमित रोजगार देना। सभी स्कीम वर्कर्स को सरकारी कर्मचारी घोषित करने, शिक्षा अधिकार कानून विस्तार करो, उम्र सीमा 14 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष करने की मांग ताकि, सरकारी निःशुल्क व्यवथाएं 18 साल की उम्र तक छात्र-छात्राओं को मिल सके। संविधान प्रदत्त महिला अधिकार की रक्षा सुनिश्चित कराना, मसलन पढ़ने लिखने की आजादी, शादी की उम्र और साथी चयन करने की आजादी, यह सब महिलाओं के संवैधानिक अधिकार है पर लागू नहीं हो पाती। चुनाव में आधी आबादी के हिसाब से भागीदारी सुनिश्चित करना , घरेलू महिला की सबसे बड़ी समस्या बढ़ती मंहगाई पर गैस का दाम 500 पर फिक्स करने, हर पंचायत में दवा और डॉक्टर का इंतजाम, विधवा, वृद्धा और दिव्यांग पेंशन की न्यूनतम राशि 1000 रुपए करने सहित अन्य मांगे शामिल है।

कार्यक्रम के दौरान गरीब आम जनता के सवाल भी उठाए गए है, क्योंकि इसका बोझ भी घर की महिलाएं ही उठाती है, जब वह अपनी गृह इकाई में बीमारों और बुजुर्गों का ख्याल रखती है, खराब स्वास्थ और पेंशन व्यवस्था का यह दंश भी महिलाएं ही झेलती है। सही ही कहा गया है की, नारी मुक्ति, पूरी मानव मुक्ति की ही लड़ाई है।

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