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ओबीसी संविधान संशोधन बिल से ओबीसी को होगा नुकसान: राजेश गुप्ता

  • पहले ओबीसी आरक्षण की सीमा बढाये, फिर किसी जाति को सुची में करें राज्य सरकार शामिल
  • तामिलनाडु सरकार की तर्ज पर हिम्मत दिखाये झारखंड सरकार

रांची। हाल ही में संसद के मानसून सत्र में राज्यों को ओबीसी सुची बनाने व किसी जाति को सामाजिक व शैक्षिक पिछडे़ होने का या ओबीसी की मान्यता का अधिकार फिर से बहाली किया गया है। जिसमें कुछ नया नहीं है। उपरोक्त बातें राष्ट्रीय ओबीसी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार गुप्ता ने कही।


श्री गुप्ता ने कहा कि 2018 में संसद ने 102 संविधान संशोधन 123 संविधान संशोधन बील के द्वारा कीया था। जिसमे संविधान की धारा 338 में 338बी को शामिल कर राष्ट्रीय पिछड़ावर्ग आयोग को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गयी थी। जो इसके पहले नही थी। साथ में धारा 342 में 342ए का संशोधन कर राज्यों को ओबीसी की सुची बनाने के अधिकार से बाहर करके ओबीसी सुची बनाने या सुची मंे किसी जाति को शामिल करने के लिए राष्ट्रपति की रिपोर्ट व संसद की मुहर जरुरी कर दी थी। लेकिन राज्य सरकारों के दबाव के वजह से मराठा आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई मंे इस पर काफी बहस हुई। इसी के मद्देनजर केन्द्रीय सरकारने 102वंे संविधान संशोधन में बदलाव का 127 संविधान संशोधन बिल संसद व राजसभा में 10 व 11 अगस्त 2021 को पारित किया। जिससे राज्य सरकारों को अपने राज्यों की ओबीसी जाती सुची बनाने का फिर से अधिकार मिला है।


झारखंड प्रदेश में ओबीसी को मात्र 14 प्रतिशत आरक्षण है और केन्द्रीय सुची में ओबीसी की पहले 134 जातियां थी। 2020 में राज्य सरकार ने 36 नयी जातियों का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा था। जिससे ओबीसी में जातियों की संख्या बढती जा रही है, लेकिन आरक्षण की सीमा नही बढ रही है। इससे ओबीसी सुची मंे पहले से शामिल ओबीसी जातीयों की सुची में नयी जातियां शामिल होने से नुकसान होगा। आरक्षण का शेअर ओर कम हो जायेगा।

उन्होंने सरकार से मांग करते हुए कहा कि राज्य मंे ओबीसी आरक्षण की सीमा को पहले बढाया जाये। झारखंड सरकार तामिलनाडु सरकार की तर्ज पर हिम्मत दिखाये और तभी किसी जाती को ओबीसी सुची मंे शामिल करने की मंजुरी दे। कहा कि मांगे पूरी नही होने पर राष्ट्रीय ओबीसी मोर्चा सरकार के खिलाफ आन्दोलन करेगी।

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