नहाय खाय के साथ छठ महापर्व की हुई शुरुआत
- झुमरी तिलैया बाजार सजकर तैयार, खरीददारी मंे जुटे लोग
कोडरमा। पूरे अभ्रकांचल मंे चार दिवसीय लोकआस्था का महापर्व छठ सोमवार को नहाए खाए के साथ शुरू हो गया। व्रती लोग कद्दू चावल का प्रसाद ग्रहण कर व्रत की शुरूआत की। मंगलवार को खरना रहेगा। डाला छठ पर्व मनाने वाली महिलाएं दीपावली पर्व के दिन से ही बहुत बेसब्री से इंतजार करती हैं। मान्यता यह कि व्रत रखने वाली महिलाएं जो भी मन्नत मानकर पूजा करती हैं वह मन्नत शतप्रतिशत पूरा होता है।
वैसे तो यह डाला छठ पर्व बिहार झारखंड राज्य का सबसे बड़ा त्योहार होता है, लेकिन धीरे-धीरे पूरे भारत के साथ साथ विदेशों में भी अब यह त्योहार बहुत तेजी से फैल गया है। सभी जगह हजारों की संख्या में महिलाएं व पुरुष डाला छठ त्योहार बहुत धूमधाम से मनाते हैं।
झुमरी तिलैया शहर के इन्दरवा छठ तालाब, पानी टंकी छठ तालाब, कोरियाठीह छठ तालाब कोडरमा के राजा तालाब, चाराडीह तालाब में डाला छठ मनाने के लिए तालाब के किनारे पूजा स्थान की घेराबंदी कर साफ सफाई की जा रही है। डाला छठ त्योहार में विशेषकर महिलाएं व्रत रखती हैं। परिवार में व्रत रखने वाली महिलाओं की मृत्यु हो जाने पर व उनके पति व्रत करते हैं। जिस परिवार में व्रत रखने वाली महिलाएं की उम्र अधिक हो जाने पर उनके परिवार के बड़ी बहू, देवरानी व जेठानी व्रत करती हैं। डाला छठ पर मूल रूप से महिलाएं अपने पति के दीर्घायु के लिए और संतान की प्राप्ति के अलावा सुख समृद्धि के लिए करती हैं।
मंगलवार को खरना रहेगा। इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं दिनभर निर्जल रहकर देर शाम को गुड़ के साथ चावल को अपने ही घर में लकड़ी के चूल्हे पर पकाकर मीठा चावल का खीर बनाती हैं। कहीं कहीं रोटी के साथ खीर प्रसाद बनाया जाता है। उसके बाद अगले दिन बुधवार की शाम को व्रत करने वाली महिलाएं व पुरुष अपने परिवार के लोगों के साथ डाला छठ को सिर पर रखकर नंगे पैर छठ घाट जाकर अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को अर्घ्य देती है। जैसे भगवान सूर्य अस्त होते हैं व्रत करने वाली महिलाएं और पुरुष गाय के कच्चे दूध से अर्घ्य देकर पूजा की समाप्ति करके पुनरू ढोल नगाड़े के साथ घर पहुंचती हैं। घर के आंगन में डाला को गन्ने के हौज के बीच में रखकर दीप प्रज्ज्वलित करके पूजा करती हैं। पूजा करने के बाद छठी मैया के गीत गाकर व्रत रखने वाली महिलाएं और पुरुष घर के जमीन पर रात भर विश्राम करते हैं। अगले दिन गुरुवार की भोर में ही डाला छठ को लेकर पुनः उसी स्थान पर पूजा करने के लिए पहुंचकर भगवान सूर्य का उदय होते हुए अर्ध्य देगी और पारण करती है।